भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने विश्वकप फाइनल मुकाबले में मेजबान इंगलैंड से हार जाने के बावजूद काफी सुर्खियां बटोरीं. भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कम से कम इसी बहाने चर्चा तो हुई. हार की मायूसी हर टीम व हर खिलाड़ी को होती है पर देखा जाए तो इस विश्वकप में हर मैच के साथ एक नया विजेता खिलाड़ी उभर कर निकला. हरमनप्रीत कौर, मिताली राज, पूनम राउत, स्मृति मंधाना, झूलन गोस्वामी जैसी खिलाडि़यों ने हर मैच में कुछ न कुछ कमाल किया. पर अनुभव से भरपूर इंगलैंड के खिलाडि़यों ने बाजी मार ली.

भारतीय महिला क्रिकेट की अनदेखी हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रही है. भेदभाव से परेशान हो कर पूर्व महिला क्रिकेटर एडुलजी ने बीसीसीआई के खिलाफ आवाज उठाई थी कि बीसीसीआई पुरुष क्रिकेटरों पर पानी की तरह पैसा बहाता है जबकि महिला क्रिकेटरों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं करता.

यह सच भी है. आज भी महिला क्रिकेटरों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलती हैं. पैसे के मामले में वे पुरुष खिलाडि़यों से बहुत पीछे हैं. पुरुष क्रिकेटरों को एक टैस्ट मैच के लिए कम से कम 8-10 लाख रुपए मिलते हैं जबकि महिला खिलाड़ी को पूरी सीरीज के लिए मात्र 2-3 लाख रुपए ही मिल पाते हैं. मीडिया कवरेज अब तो थोड़ाबहुत मिल भी जाती है पहले तो अखबारों में कहीं एक कौलम में भी जगह नहीं मिलती थी जबकि पुरुष क्रिकेटरों के नाम पूरा पेज भरा होता है. महिला क्रिकेट मैच में स्टेडियम में दर्शक नहीं जुटते जबकि पुरुष क्रिकेट मैच में स्टेडियम खचाखच भरा होता है.

दरअसल, हमारा मर्दवादी समाज महिलाओं का सिर्फ शारीरिक सौंदर्य देखना पसंद करता है, उन का खेल प्रदर्शन नहीं. आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि टैनिस मैच को देखने के लिए मर्दों की भीड़ खूब होती है क्योंकि वहां टैनिस खिलाड़ी छोटेछोटे कपड़ों में होती हैं. यहां खेलप्रेमी जरूर होते हैं जो खेल को देखने जाते हैं पर ऐसी सोच वालों की भी कमी नहीं है जो टैनिस खिलाडि़यों के शारीरिक सौंदर्य व कपड़ों को देखने जाते हैं.

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