भीमा कोरेगांव मामले में पांच सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और वकीलों की गिरफ्तारियों के खिलाफ दायर याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने 28 सितंबर के दिन फैसला सुनाया. महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में इस साल जनवरी में हुई हिंसा की घटना से कथित तौर पर संबंधित होने के आरोपों में इन लोगों को गिरफ्तार किया गया है. याचिका में इन लोगों को रिहा करने और मामले की जांच अदालत की निगरानी वाली विशेष जांच टीम (एसआईटी) से कराए जाने की मांग की गई थी. तीन जजों की पीठ ने बहुमत से अपने फैसले में याचिका को रद्द कर दिया. न्यायाधीश एएम खानविलकर ने अपने और मुख्य न्यायाधीश की ओर से फैसला लिखा था जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने विपरीत फैसला सुनाया.

गौरतलब है कि 27 सितंबर की शाम तक सर्वोच्च अदालत की वेबसाइट में यह बताया गया था कि इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ही फैसला पढ़ेंगे.

हर दिन सर्वोच्च अदालत अगले दिन की होने वाली सुनवाइयों की जानकारी- मुकदमा सूची - को अपनी वेबसाइट में अपलोड करती है. इस सूची में मामले की सुनवाई करने वाले जजों के नाम, सुनवाई के लिए तय समय और फैसला पढ़ने वाले जजों की जानकारी होती है.

27 सितंबर को जारी सूची के अनुसार भीमा कोरेगांव मामले से संबंधित याचिका पर एकमात्र जस्टिस चंद्रचूड़ का फैसला आना था. वे ही इस फैसले को पढ़ने वाले थे. सुनवाई की सुबह सर्वोच्च अदालत की रजिस्ट्री ने वेबसाइट पर नोटिस अपलोड कर स्पष्टीकरण दिया कि ‘‘माननीय न्यायाधीश चंद्रचूड़ द्वारा पढ़े जाने वाले फैसले को न्यायाधीश खानविलकर और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा द्वारा पढ़ा गया फैसला माना जाए.’’

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