एससी/एसटी एक्ट पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर देश भर का दलित समुदाय उबल रहा है. 2 अप्रैल को भारत बंद के ऐलान के बाद दलित संगठनों द्वारा धरना, प्रदर्शन, तोड़फोड़ और हिंसा की वारदातें हुईं. पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ में रेलगाड़ियां रोकने, गाड़ियों में तोड़फोड़ की खबरें आईं. पुलिस के साथ झड़पें हुईं. मुरैना में एक व्यक्ति की मौत की हो गई और दूसरे हिस्सों में सैंकड़ों लोगों के घायल होने के समाचार हैं.

पंजाब में पहले दिन ही सरकार ने स्कूलें बंद करने की घोषणा कर दी थी और राज्य में इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी गई. पूरे पंजाब में सुरक्षा बल तैनात कर दिए थे.

भारत बंद का समर्थन कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने तो किया ही, खुद सरकार के सहयोगी दलों के दलित और पिछड़े वर्ग के जनप्रतिनिधियों पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की.

हालांकि विरोध के बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की.

मालूम हो कि दलित समुदाय के एक व्यक्ति ने महाराष्ट्र के सरकारी अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में महाजन पर अपने ऊपर आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में अपने दो जूनियर कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई पर रोक लगाने का आरोप लगाया था. याचिकाकर्ता का कहना था कि उन कर्मचारियों ने उन पर जातिसूचक टिप्पणी की थी.

इन गैर दलित अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उस के खिलाफ टिप्पणी की थी. जब मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के खिलाफ कारवाई के लिए उन के वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत मांगी तो इजाजत नहीं दी गई. बचाव पक्ष का कहना था कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इस से काम करना मुश्किल होगा.

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