पाखंडी सब ऐश कर रहे जनता लुटे बेचारी,

भोले भक्तों की कमाई भरे दानपेटियां सारी.

इसी के बल पर दाढ़ीचोटी वाले मौज मनाते,

आंखें खोल कर रहने की अब आई बारी.

चढ़ावे के नाम पर मची लूट व अंधेरगर्दी पर ये लाइनें बड़ी सटीक लगती हैं. धार्मिक जगहों पर लगी दानपेटियों में भक्त सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात, नकदी, जेवर वगैरह चढ़ाते रहते हैं इसलिए मंदिरों, गुरुद्वारों वगैरह में इतनी ज्यादा दौलत बरसती है कि नोट गिनने के लिए मशीनें लगानी पड़ती हैं.

ऐसी इमारतों की दीवारों, दरवाजों, गुंबदों वगैरह पर सोनेचांदी के पतरे चढ़ाए जाते हैं. मूर्तियां व सिंहासन सोनेचांदी के बन जाते हैं. उसी दौलत की बदौलत पंडेपुजारी, संतमहंत, मैनेजर वगैरह सब मौज करते हैं.

धर्म व मजहब के नाम पर दानपुण्य, चढ़ावे, खैरात वगैरह की महिमा का बखान सदियों से किया जाता रहा है. धर्म की किताबों में ऐसे किस्से भरे पड़े हैं. चढ़ावे के चलन को बढ़ाने के लिए धर्म प्रचारक खूब बढ़चढ़ कर झूठी कहानियां सुनाते हैं, अफवाहें फैलाते हैं, ऊलजुलूल बातों से लोगों को तरहतरह से भरमाते व बहकाते हैं.

पंडेपुजारी यह बात जानते हैं कि ज्यादातर लोग खुद पर यकीन रखने की जगह भाग्य व भगवान पर भरोसा करते हैं, इसलिए वे अपने मसलों से घबरा कर मठमंदिरों की शरण में चले जाते हैं और वहां लगी दानपेटियों में यह सोच कर पैसे डालते हैं कि इस से भगवान खुश होंगे और उन का काम जल्दी बन जाएगा, लेकिन अगर चढ़ावे से ही मन्नतें पूरी होतीं तो दुनिया में कभी किसी की कोई इच्छा अधूरी ही नहीं रहती.

गोरखधंधा है यह

सिर्फ अपना घर भरने की गरज से पंडेपुरोहित जीने से मरने तक में लोगों को दान करने व चढ़ावा चढ़ाने की घुट्टी पिलाते रहते हैं. मसलन चढ़ावा चढ़ाने से सारे पाप कट जाएंगे, दुखतकलीफें खत्म हो जाएंगी, खराब ग्रह ठीक हो जाएंगे, बीमारी व गरीबी चली जाएगी, कई गुना पैसा लौट कर आएगा, पुण्य व मोक्ष मिलेगा, इसलिए अपनी कमाई का कम से कम 10वां हिस्सा तो मंदिर या तीर्थ में ब्राह्मण को जरूर दान कर देना चाहिए. कभीकभार वे ज्यादा दान भी मांगते हैं. आजकल भगवा दुपट्टा डाले रंगदार गलीगली में पैदा हो गए हैं.

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