भले ही समाज आज चाहे आधुनिक होने पर इतरा रहा है पर इसी समाज के अनेक लोग ऐसे हैं जो बेटी होने पर या तो खुशी जाहिर करते ही नहीं और यदि करते भी हैं तो उतनी खुशी जाहिर नहीं करते जितनी बेटा पैदा होने पर की जाती है. बेटा होने की चाहत में वह गर्भ में पल रही कन्या की हत्या तक करा देते हैं.

भारत के किसीकिसी क्षेत्र में तो बेटी को जन्म देने वाली मां को ही इस का कुसूरवार समझा जाता है. जिस से उन इलाकों में भ्रूण हत्याएं बहुत होती है. इस का नतीजा यह निकलता है कि उस इलाके में लड़कों के बजाए लड़कियों की संख्या बहुत कम रह जाती है. जो सामाजिक संतुलन के लिए सही नहीं है.

राजस्थान के झुंझनू, सीकर जिलों में भी यही स्थिति थी. लड़के की चाहत रखने वाले अनेक लोग डाक्टरों की मिलीभगत से कन्या को जन्म लेने से पहले ही गर्भ में खत्म करा देते थे. जिस की वजह से इन इलाकों में लड़कियों की संख्या में गिरावट आ रही थी. सन 2011 की जनगणना के अनुसार झुंझनू में 1000 लड़कों के मुकाबले 837 लड़कियां थीं.

यह गिरावट चिंता का विषय थी. लिहाजा क्षेत्र के कुछ जिम्मेदार लोग इस कुरीति को रोकने और लोगों की सोच बदलने के लिए सामने आए. लोगों ने तय कर लिया कि अब बेटी पैदा होने पर घर में खुशी जाहिर की जाएगी. कोई भी कन्या भ्रूण की हत्या नहीं कराएगा. इस अभियान को चलाने के लिए समितियां भी बनाई गईं.

समितियों ने कुछ गर्भवती महिलाओं को डमी बना कर अलगअलग डाक्टरों के पास कन्या भ्रूण हत्या कराने की बात तय करने के लिए भेजा. जो डाक्टर इस काम के लिए तैयार हुए उन्हें रंगे हाथों पकड़वाया गया. इस से डाक्टरों में भी डर बैठ गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...