सुखवंत कौर पिछले कई दिनों से इस पशोपेश में थी कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि उस का पति आजाद सिंह परेशान सा रहता है. उस के चेहरे की मुसकराहट भी जैसे कहीं उड़ गई थी. बातबात पर खीझ उठना, किसी बात का ठीक से जवाब न देना जैसे अब आजाद सिंह की आदत बन गई थी. पहले औफिस से लौटने के बाद वह घर में हंसीमजाक किया करता था और बच्चों के साथ घंटों खेला करता था.

बच्चों से उन के स्कूल और पढ़ाई के बारे में भी बात करता था. लेकिन अब ऐसा लग रहा था, जैसे उसे किसी से कोई वास्ता ही नहीं रह गया हो. औफिस से लौटने के बाद बिना किसी से कोई बात किए अपने कमरे में चले जाना और घंटों फोन पर किसी से बातें करना, बस यही उस की आदत बन गई थी.

सुखवंत कौर ने कई बार पूछा भी था कि ऐसी क्या बात हो गई है, जिस वजह से तुम हर समय परेशान और उखड़े से रहते हो? इस पर आजाद ने बड़े रूखेपन से जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं हुआ है, तुम अपने काम से काम रखो और इन फालतू बातों को छोड़ कर घरगृहस्थी पर ध्यान दो.’’

‘‘क्यों जी, क्या हम इस घर के मेंबर नहीं हैं. मैं तो आप की पत्नी हूं, आप की परेशानी को जानना मेरा फर्ज है. अगर कोई ऐसीवैसी बात या कोई समस्या है तो मुझे बताओ, हम सब मिल कर उस का समाधान निकालेंगे.’’ सुखवंत कौर बोली.

‘‘मैं ने कहा न, कोई बात नहीं है. बस तुम मुझे अकेला छोड़ दो.’’ आजाद ने पत्नी को डांटते हुए कहा तो सुखवंत कौर खामोश हो कर घर के कामों में जुट गई. लेकिन वह रोजरोज आजाद से इस विषय में जरूर पूछ लिया करती थी. यह अलग बात है कि आजाद ने उसे कभी कोई बात नहीं बताई, हमेशा वह उसे डांट कर चुप करा देता था.

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