राजस्थान देश का अकेला ऐसा राज्य है जिस के हाईकोर्ट में ‘मनुस्मृति’ लिखने वाले मनु की मूर्ति लगी हुई है. गौरतलब है कि ‘मनुस्मृति’ में औरतों व शूद्रों के बारे में बेहद गलत बातें लिखी गई हैं.

डाक्टर भीमराव अंबेडकर के मुताबिक, ‘मनुस्मृति’ जाति की ऊंचनीच भरी व्यवस्था को मजबूत करती है, इसलिए उन्होंने 25 दिसंबर, 1927 को सरेआम ‘मनुस्मृति’ को जलाने की हिम्मत दिखाई थी.

मगर यह बेहद दुख की बात है कि औरतों और दलितों के विरोधी और इनसानी बराबरी के दुश्मन मनु की मूर्ति कोर्ट में लगी हुई है, जबकि उसी कोर्ट के बाहर अंबेडकर की मूर्ति लगाई गई है जो अनदेखी का शिकार है.

मनु की इसी मूर्ति को ले कर राज्य में 28 साल बाद एक बार फिर से बवाल शुरू हो गया है. राज्य के दलित और महिला संगठनों ने मनु की मूर्ति को हाईकोर्ट से हटाने के लिए राज्यभर में आंदोलन का ऐलान किया है. इस बीच राजस्थान सरकार ने हाईकोर्ट में मनु की मूर्ति के बाहर भारी फोर्स तैनात की हुई है.

दलित और महिला संगठनों का कहना है कि जिस मनु ने औरतों और जाति व्यवस्था के बारे में एतराज वाली बातें कही हैं, उस की मूर्ति की छाया में हाईकोर्ट बिना किसी का पक्ष लिए फैसला कैसे दे सकता है?

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साल 1989 में न्यायिक सेवा संगठन के अध्यक्ष पदम कुमार जैन ने राजस्थान हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस एमएम कासलीवाल की इजाजत से मनु की इस बड़ी मूर्ति को लगवाया था.

तब राज्यभर में हंगामा मचा था और राजस्थान हाईकोर्ट की प्रशासनिक पीठ ने इसे हटाने के लिए रजिस्ट्रार के जरीए न्यायिक सेवा संगठन को कहा था, लेकिन तभी हिंदू महासभा की तरफ से आचार्य धर्मेंद्र ने मनु की मूर्ति हटाने के खिलाफ हाईकोर्ट में स्टे और्डर की याचिका लगा दी थी कि एक बार लगाई गई मूर्ति हटाई नहीं जा सकती.

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