देशभर में 26.8 फीसदी लड़कियों और 20 फीसदी लड़कों की शादी आज भी कच्ची उम्र में की जा रही है. नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट कहती है कि बिहार में 21 साल से पहले 40 फीसदी लड़कों और 18 साल से पहले 39 फीसदी लड़कियों की शादी करा दी जाती है, वहीं उत्तर प्रदेश में 28.8 फीसदी लड़कों और 21 फीसदी लड़कियों की शादी बालिग होने से पहले ही कर दी जाती है.

सर्वे में कहा गया है कि गांवदेहात में बड़े लैवल पर धड़ल्ले से बाल विवाह किए जा रहे हैं. गांवों में 24 फीसदी लड़कों और 37 फीसदी लड़कियों की शादी कानून द्वारा तय की गई शादी की उम्र्र से पहले ही कर दी जाती है.

साल 1929 में बनाया गया बाल विवाह निरोधक कानून कहता है कि लड़की की शादी 18 साल और लड़के की शादी 21 साल की उम्र से पहले नहीं की जा सकती है.

साल 2006 में बाल विवाह निरोध अधिनियम को नए सिरे से लागू किया गया. बाल विवाह प्रतिरोध अधिनियम, 2006 की धारा-2(ए) के तहत 21 साल से कम उम्र के लड़कों और 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को नाबालिग करार दिया गया है.

इस कानून के तहत बाल विवाह को गैरकानूनी करार दिया गया है. बाल विवाह की इजाजत देने, शादी तय करने, शादी कराने या शादी समारोह में हिस्सा लेने वालों को भी सजा दिए जाने का कानून है.

कानून की धारा-10 के मुताबिक, बाल विवाह कराने वाले को 2 साल तक साधारण कारावास या एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा दी जा सकती है, वहीं धारा-11 (1) कहती है कि बाल विवाह को बढ़ावा देने या उस की इजाजत देने वालों को 2 साल तक का कठोर कारावास और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा हो सकती है.

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