पटना में एक ऐसी रेलगाड़ी चल रही है, जो रेलगाड़ी के मकसद को पूरा नहीं कर पा रही है. पटना के बाशिंदों के लिए मुसीबत बन चुकी इस रेलगाड़ी का नाम है, ‘पटनादीघा घाट पैसेंजर ट्रेन’.

यह रेलगाड़ी रोज 7 किलोमीटर का 2 फेरा लगाती है. 3 डब्बों की यह रेलगाड़ी पटना वालों को सुविधा कम देती है, मुसीबत ज्यादा पैदा कर रही है.

20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पटना जंक्शन और दीघा घाट के बीच चलने वाली इस रेलगाड़ी की वजह से रोज हजारों लोग लंबे ट्रैफिक जाम को झेलते हैं.

पटना जंक्शन से यह सुबह 7 बज कर 55 मिनट पर खुलती है. इस में 20-25 से ज्यादा सवारियां नहीं होती हैं. ज्यादातर बेटिकट ही होते हैं, क्योंकि इस में टिकट चैक करने वाला कोई नहीं होता है.

5 मिनट में रेलगाड़ी अपने पहले स्टौपेज आर. ब्लौक पहुंचती है. उस के बाद पुराने सचिवालय हाल्ट पर रुकती है. 8 बज कर 10 मिनट पर हड़ताली मोड़ पहुंचती है. वहां से पुनाईचक हाल्ट, इंद्रपुरी, राजीवनगर हौल्ट पर रुकती हुई साढ़े 8 बजे दीघा पहुंचती है.

दीघा हाल्ट के पास न कोई प्लेटफार्म है और न ही कोई बोर्ड है. प्लेटफार्म तकरीबन 4 सौ मीटर आगे है और वहां तक ट्रेन पहुंच ही नहीं सकती है, क्योंकि ट्रैक पर मिट्टी और कचरा भरा हुआ है.

पटनादीघा घाट रेलवे ट्रैक तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है. अंगरेजों ने दीघा के एफसीआई गोदाम तक अनाज की ढुलाई के लिए इसे बिछाया था. पिछले काफी सालों से टै्रक बेकार पड़ा हुआ था, जिस से उस पर काफी कब्जा हो गया था.

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