अपनी लच्छेदार बातों और जुमलेबाजी से लोगों को सब्जबाग दिखाते रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोजगार के मोरचे पर कितने नाकाम साबित हुए हैं, यह बात अब किसी सुबूत की मुहताज नहीं रह गई है. उन के 4 साल के राज में बेरोजगारों की फौज में नौजवानों की तादाद 15 करोड़ का आंकड़ा छू रही है.
बढ़ती बेरोजगारी और बेकारी के इस दौर ने एक और नई बीमारी को जन्म दिया है कि जिस दाम पर भी मिले नौकरी खरीद लो. इस की एक मिसाल 31 मार्च, 2018 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में दिखी थी. इस दिन मुखबिरी की बिना पर ग्वालियर पुलिस ने शहर के पड़ाव इलाके के एक नामी होटल सिद्धार्थ पैलेस पर छापा मारते हुए तकरीबन 50 लड़कों को गिरफ्तार किया था. इन सभी की उम्र 25 साल से कम थी.
1 अप्रैल, 2018 को एफसीआई यानी फूड कारपोरेशन औफ इंडिया के वाचमैन पदों के लिए लिखित परीक्षा होनी थी. 271 पदों के लिए एक लाख से भी ज्यादा बेरोजगार नौजवानों ने इस पद के लिए फार्म भरे थे. यह परीक्षा अलगअलग राज्यों में अलगअलग तारीखों पर हो रही थी.
इतनी ज्यादा तादाद में अगर नौजवान वाचमैन जैसी छोटी नौकरी के लिए लाइन में लगे थे तो साफ दिख रहा है कि बेरोजगारी की जमीनी हकीकत क्या है. एक वक्त में वाचमैन के इसी पद के लिए न केवल एफसीआई बल्कि केंद्र सरकार की दूसरी एजेंसियां भी उम्मीदवारों के लिए तरस जाती थीं.
एक पद के मुकाबले 3 उम्मीदवारों का आना भी बड़ी बात समझी जाती थी. लिहाजा, मुंहजबानी इंटरव्यू, तालीम और कदकाठी देख कर ही उम्मीदवारों को नौकरी पर रख लिया जाता था.