आप सोच रहे होंगे कौन हैं गंगाराम. ... कभी दिल्ली के सीलमपुर के सबसे बिजी चौक पर जाएं, तो हैवी ट्रैफिक को ढीली ढाली वर्दी पहने, हाथ में डंडा लिए कंट्रोल करते नजर आएंगे गंगाराम. उनके हाथ के इशारे पर ट्रैफिक पूरी तरह अनुशासित तरीके से थमता चलता नजर आएगा. पिछले 30 साल से इसी चौक पर हर रोज सुबह 8 से रात 10 बजे तक गंगाराम ट्रैफिक पुलिस जैसी वर्दी पहने मुस्तैद हैं.

उम्र के इस पड़ाव पर अब तक रिटायर क्यों नहीं. क्योंकि वे असल में पुलिस वाले हैं ही नहीं. सवाल उठता है कि बुढ़ापे में मुफ्त की नौकरी क्यों. दरअसल, गंगाराम की जिंदगी हमेशा ऐसी नहीं थी. उन्हीं के मुताबिक, 30 साल पहले की बात है. मेरा भी अच्छा खुशहाल परिवार था. मेरी टीवी रिपेयरिंग की दुकान थी सीलमपुर के अंदर. वायरलेस वगैरह भी रिपेयर करता था. मेरा बेटा भी साथ में टीवी रिपेयर करता था. ट्रैफिक वालों ने मेरा फॉर्म भर दिया ट्रैफिक वार्डन का. फिर मैं ट्रैफिक वार्डन बन गया. मैं सवेरे व शाम को इसी चौक पर ट्रैफिक सेवा करता था. फिर 10 बजे दुकान खोलता था.

गंगाराम को जिंदगी का सबसे बड़ा झटका आठ साल पहले लगा. जब इकलौते जवान बेटे को इसी सीलमपुर रेड लाइट पर एक ट्रक ने कुचल दिया. उस दिन बेटा बाइक से जा रहा था. बेटे को याद कर रो पड़ते हैं गंगाराम. उनके मुताबिक, 6 महीने तक हमने गुरु तेगबहादुर अस्पताल के चक्कर लगाए. लेकिन बचा नहीं सके. बेटे की मौत के गम में कुछ दिन बाद उसकी मां भी गुजर गई. जिसके बाद मैं पूरी तरह अकेला हो गया. परिवार में अब बहू, एक पोती व एक पोता है. बहू को नर्स के काम में लगाया. अपनी तनख्वाह से वो परिवार का खर्च चला लेती है. मेरा जीवन यही वर्दी है. खुद धोता हूं, प्रेस करता हूं. मुस्तैद रहता हूं.

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