आसाराम, रामरहीम व फलाहारी बाबा के बाद रंगीनमिजाजी में एक और नाम वीरेंद्र दीक्षित का सामने आया. 21 दिसंबर, 2017 को पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर दिल्ली में उस की आध्यात्मिक यूनिवर्सिटी पर छापा मार कर दर्जनों लड़कियों को बाहर निकाला. उन में से कुछ लड़कियों ने मीडिया को बताया कि वह बाबा खुद को कृष्ण व उन्हें अपनी गोपियां बता कर गुप्त ज्ञान व प्रसाद देने के नाम पर उन के साथ मुंह काला करता था.

यह असर धर्म की उस अफीम का है, जिस की घुट्टी जीने से मरने तक कदमकदम पर लोगों को पिलाई जाती है. बेकार की बातों को हवा देने वाली तमाम ऊलजुलूल किस्सेकहानियां धर्म की किताबों में भरी पड़ी हैं. बातों की चाशनी चढ़ा कर प्रवचनों में उन्हें दोहराया जाता है. स्वर्ग व मोक्ष मिलने का लालच दे कर लोगों को बहकाया जाता है. सारे दुखों से छुटकारा मिलने का झांसा दे कर उन्हें भरमाया जाता है. इस से ज्यादातर लोग चालबाज बाबाओं की लुभावनी बातों में आ जाते हैं.

इन्हीं बातों के असर से धर्म के दलदल में डूबे लोग सहीगलत में फर्क करना भूल जाते हैं. अपनी बेटियों व पत्नियों को बाबाओं के आश्रमों में ले जा कर कुरबान कर देते हैं.

ऐसी लड़कियां व औरतें बाबाओं के चंगुल में फंस कर जबतब अपनी इज्जतआबरू गंवा देती हैं तो उन्हें बताया जाता है कि वे तो भगवान की हो चुकी हैं, बाहरी दुनिया पाप की गठरी है.

पीडि़त लड़कियों में से ज्यादातर लोकलाज व बलात्कारी बाबाओं व उन के गुंडों के डर से चुप्पी साध जाती हैं. अपनी जबान सिल कर वे हालात से समझौता कर लेती हैं. किसी से कोई शिकायत भी नहीं करतीं. गिरोह की कई मुफ्तखोर सदस्या तो खुद बाहर आने से इनकार कर देती हैं. इतना ही नहीं, उन पाखंडी बाबाओं के हक में बोलने व लड़ने के लिए वे खड़ी हो जाती हैं.

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