लाखों रुपए खर्च कर के बनने वाले देश के 95 प्रतिशत इंजीनियर और सौफ्टवेयर डैवलपमैंट से जुड़ी नौकरियों के काबिल ही नहीं हैं. यह आकलन है रोजगार से जुड़ी कंपनी एस्पायरिंग माइंड्स का. इस के एक अध्ययन में सामने आया है कि लगभग 4.77 प्रतिशत उम्मीदवार ही प्रोग्राम के लिए सही लौजिक लिख पाते हैं जोकि प्रोग्रामिंग की नौकरी के लिए न्यूनतम आवश्यकता है. छात्रों की इस भयानक खामी का तब पता चला जब आईटी संबंधित कालेजों की 500 ब्रांचों के 36 हजार से ज्यादा छात्रों ने औटोमेटा नाम के एक टैस्ट में हिस्सा लिया. इन में से दोतिहाई छात्र सहीसही कोड भी नहीं डाल सके. इस स्टडी में सामने आया कि जहां 60 प्रतिशत उम्मीदवार सही से कोड नहीं डाल पाए वहीं सिर्फ 1.4 प्रतिशत छात्र ही ऐसे निकले जिन्होंने सही कोड डालने में सफलता प्राप्त की.

क्या हमारे इंजीनियरिंग के छात्रों की यही खामी उन के बड़ेबड़े सपनों के लिए सब से बड़ी बाधा बन गई है? जी, हां, पूरी दुनिया में भारतीय इंजीनियरों की बौद्धिक क्षमताओं और तकनीकी कुशलता को ले कर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. 6 साल पहले तब के मानव संसाधन विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि हमारे आईआईटी से निकलने वाले तमाम छात्रों में से महज 15 फीसदी छात्र ही रोजगार के काबिल हैं. उन के इस हंगामा खड़ा करने वाले बयान के कुछ ही दिनों बाद सौफ्टवेयर कंपनी इन्फोसिस के तत्कालीन अध्यक्ष एन नारायण मूर्ति ने भी यही कहा था.

यह बात सिर्फ एक शोध या अध्ययन की नहीं है, बल्कि इस सचाई को पहले से ही हमारे देश के तमाम रोजगारप्रदाता जानते हैं. इसीलिए जब आईआईटीज में कैंपस रिक्रूटमैंट होता है तो सभी छात्रों को नौकरियां नहीं मिलतीं और करोड़ों के पैकेज बस, खूबसूरत कल्पना बन कर रह जाते हैं, तो कोई हंगामा खड़ा नहीं होता. स्किल्स की कमी

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