विनायक शाह मध्यप्रदेश के महकौशल क्षेत्र के शहर जबलपुर के जाने माने वकील हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करते इस बात पर एतराज जताया था कि देश भर के केन्द्रीय विद्यालयों में सुबह जो प्रार्थना होती है वह पूरी तरह असंवैधानिक है. बकौल विनायक सरकारी स्कूलों में धार्मिक मान्यताओं और ज्ञान को प्रचारित करने के बजाय वैज्ञानिक तथ्यों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए. अपनी दलील में दम लाने हालांकि इन वकील साहब ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 का हवाला दिया था, पर यह उनकी दलीलों का ही असर था कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने केंद्र सरकार और केंद्रीय स्कूलों को नोटिस जारी करते 4 सप्ताह में जबाब मांगा है.

यहां विनायक शाह के दूसरे तर्कों पर भी ध्यान देना जरूरी है, जिनके चलते जस्टिस आरएफ नरीमन और नवीन सिन्हा की पीठ ने सरकार और स्कूलों से सफाई मांगी है. विनायक खुद भी एक केंद्रीय स्कूल में पढ़े हैं, उनका कहना है कि प्रार्थना के कारण बच्चों में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण विकसित होने में मुश्किल आती है, क्योंकि भगवान और धार्मिक आस्था का जो पूरा नजरिया है, वो बच्चों की सोचने समझने की प्रक्रिया में आधार हो जाता है और वे उसी तरह सोचने लगते हैं (जाहिर है उस तरह जैसे कि धर्म के ठेकेदार चाहते हैं).

विनायक यह भी कुछ गलत या अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं कह रहे कि आम जीवन की मुश्किलों का समाधान खोजने की जगह बच्चे द्वारा अंदर भगवान को याद करना और उससे भीख मांगने की भावना बनने लगती है और ऐसे में जांचने-परखने और सुधार करने की भावना कहीं न कहीं खो जाती है.

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