जिस भगवान की मर्जी के बगैर बच्चा पैदा होना तो दूर की बात है पत्ता भी न हिलता हो उसकी मर्जी के बिना फर्जी साधु कैसे पैदा हो सकते हैं यह बात अब हैरानी, दिलचस्पी या चिंता की नहीं बल्कि शोध का विषय हो चली है. खुद को असली साबित करने के लिए कुछ कथित साधु संतों के एक संगठन को फर्जी बाबाओं की लिस्ट कुछ और नहीं बल्कि धर्म के अपने शाश्वत धंधे को चमकाए रखने का टोटका भर है. यह टोटका अब से कुछ साल पहले तक अखबारों में अक्सर छपने वाले एक इश्तिहार की याद दिलाता है.

कुछ बीड़ी निर्माता मोटे मोटे अक्षरों के जरिये खबर देते थे कि नक्कालों से सावधान, कुछ विक्रेता हमारे ब्रांड की बीड़ी के नाम से मिलती जुलती बीड़ी बेच रहे हैं पकड़ाये जाने पर ऐसे नक्कालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. इस इश्तिहार से कई फायदे एक साथ होते थे पहला यह मशवरा कि सेहत के लिए नुकसानदेह होते हुये भी बीड़ी पीयी जा सकती है और हमारे ब्रांड की बीड़ी इतनी बिकती है कि लोग उसकी नकल करते हैं पर तीसरा बड़ा फायदा यह संदेश लाना होता था कि बीड़ी असली हो या नकली नशा भरपूर देती है. फिर असली नकली की पहचान और ट्रेड मार्क की जांच करने की जहमत बीड़ी का धुआं उड़ाने वाले नहीं उठाते थे.  उन्हें नशे से मतलब होता था फिर चाहे वह असली से मिले या नकली बीड़ी से. भारतीय उपभोक्ता भोला नहीं है वह इस संभावना से भी इंकार नहीं करता था कि मुमकिन है यह नकली बीड़ी भी असली निर्माता ही बनाता हो जिससे उसकी असली नकली दोनों बीड़ी बिकती रहें और वह इस तरह नशे के प्रसार के कानूनी आरोप से भी बच जाता है.

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