दिनोंदिन मजबूत होता धर्म का जाल हर संप्रदाय में ऐसे आत्मघाती हमलावरों सरीखी फ़ौज तैयार कर रहा है जो अपनी कमर में बम लगाकर खुद को यह सोचकर उड़ा लेते हैं, कि जन्नत में हूरें इन्तेजार कर रही हैं. ठीक वैसे हम भी मदिरों की सीढ़ियों, नदियों के घाटों और ट्रेन की पटरियों पर आती-जाती रेलों से कुचलने से नहीं घबराते. बठिंडा में छठ पूजा के दौरान रेलवे ट्रैक पर जमा सैकड़ों लोगों को देखकर तो यही लग रहा था.

जिस तरह अफीम का नशा कुछ ऐसा होता है कि नशे में डूबा शख्स खुद को ही चोट पहुंचाकर आनंदित होता है. और उसे ऐसा करने से रोकने वाला दुश्मन लगता है. उसी तरह आज धर्म की अफीम चाटे हुए लोग मरने को तैयार हैं लेकिन सबक लेने को नहीं. गुजरे दशहरे को अमृतसर में रेलवे ट्रैक के बीचोंबीच रावण दहन का जश्न मन रही भीड़ को जब ट्रेन ने कुचला तो सरकार, रेलवे से लेकर पुलिस-प्रशासन तक सबको कोसा गया. कम लोगों ने ही उस भीड़ को कोसा जो धर्म के नशे में अंधी होकर रेल की पटरियों पर बहरी होकर मौत का इन्तेजार कर रही थी. लेकिन अमृतसर हादसे से बिना कोई सबक लिए हुए फिर वही सैकड़ों की भीड़ जब रेल ट्रैक पर खड़े होकर छठ पूजा पूजा कर रही थी तो यह साफ़ हो गया कि यह नशा इतनी जल्दी नहीं उतरेगा.

अमृतसर हो या बठिंडा..
अमृतसर और बठिंडा के बीच करीब 189 किलोमीटर का फासला है लेकिन सोच में इंचों का भी नहीं. शायद इसीलिए अमृतसर में 19 अक्टूबर को हुए दर्दनाक हादसे, जिसमें 61 लोगों की जान चली गई थी से बिना कोई सबक लेते हुए बठिंडा में छठ पूजा के दौरान सैकड़ों लोग फिर रेलवे ट्रैक पर जमा होकर पूजा करते नजर आए. बठिंडा में सरहिंद नहर के किनारे रेलवे ट्रैक पर रोजाना दर्जनों ट्रेन गुजरती हैं. और इसी ट्रैक पर छठ पूजा के नाम पर सैकड़ों महिलाएं, बच्चे और पुरुष जमा थे सूर्या को अर्घ्य देने के लिए.

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