साल 2013 में कांग्रेसी राज में शुरू की गई अंतर्जातीय विवाह की स्कीम में दूल्हे या दुलहन में से अगर एक दलित है तो ढाई लाख रुपए मिल सकते हैं पर 2014-15 में सिर्फ 5 जोड़ों को यह रकम मिली थी. 2015-16 में 74 जोड़ों को मंजूर की गई थी. कितनों को मिली यह साफ नहीं है क्योंकि इस संस्था की भी लापरवाही वैसी ही है जैसी ‘दलित ऐक्ट’ के मामलों में सजा देने वाली अदालतों की.

दूसरी तरफ जस्टिस अरुण मिश्रा और एमएम शांतनागौदार ने 20 साल काम करने के बाद जाति को जन्म से तय हो जाने का फैसला दे कर तय कर दिया कि न देश से जाति बदली है न आम लोगों का रुख (देखें सरस सलिल जून (प्रथम) 2018 अंक की गहरी पैठ).

देश में कई सर्वों से यही पता चल रहा है कि 95 फीसदी लोग अपनी ही जाति में शादी कर रहे हैं. दलितों की सवर्णों में तो शादी न के बराबर है. इक्कादुक्का शादियां दलितों और पिछड़ों में हो रही हैं. पिछड़े सवर्ण समाज के लिए वे शूद्र ही हैं जो रामायण में केवट और शंबूक हैं और महाभारत में एकलव्य.

फैमिली शादी डौट कौम के पहले ही पेज पर जो फार्म है उस में आयु, भाषा के बाद जाति ही है. मुजफ्फरपुर पुलिस ने 2 लड़कों को एक दलित लड़के की पिटाई 2 साल तक करने पर गिरफ्तार किया. उस का वीडियो वायरल हो गया था. उस का दोष था कि उस के नंबर अच्छे आए थे. वेदों की रक्षा करने वाले ब्राह्मण को ईश्वर का मुख बताया गया है और शूद्र (जो दलित नहीं) ईश्वर की सेवा करने वाले पैर. दलित तो पांचवीं जाति हैं जो जाति बाहर हैं और हाल ही में उन्हें जबरन मन मार कर सहना पड़ रहा है. यह मानसिकता हर रोज फैलाई जा रही है. बारबार दोहराई जा रही है. हर पंडे की किताब में यही लिखा है.

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