एक ही देश में क्या घड़ी की सूइयां अलग अलग वक्त बता सकती हैं? यह एक मुश्किल सवाल है क्योंकि भारत में फिलहाल लोगों को इस की आदत नहीं है कि कश्मीर में अगर किसी दिन सुबह के 11 बजे हों, तो उसी समय अरुणाचल प्रदेश में घड़ी की सूइयां 12 बजे का वक्त दिखा रही हों. हालांकि, ऐसा देश में काफी पहले हो चुका है. 1880 के दशक में मद्रास टाइम 2 टाइम जोनों के बीच अलग से प्रचलन में था और इस के अलावा पोर्ट ब्लेयर मीन टाइम भी अलग से तय किया जाता था. लेकिन अब एक बार फिर देश में 2 टाइम जोन बनाने की मांग उठ रही है.

इस बार अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू अपने राज्य की जरूरतों के मद्देनजर केंद्र सरकार से इस की पहल करने को कह रहे हैं. बिजली बचाने और सड़क दुर्घटनाएं रोकने के मकसद से वहां यह मांग की जा रही है. पर इस के कई अन्य पहलू भी हैं, जो 2 साल पहले 2015 में महाराष्ट्र में उजागर हुए थे. तब बौंबे हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से उपनगरीय लोकल ट्रेनों में ज्यादा भीड़भाड़ पर रोक लगाने के लिए दफ्तरों के समय में तबदीली करने के बारे में सुझाव दिया था. अदालत ने कहा था कि अगर आधे या कुछ प्रतिशत दफ्तरों का समय थोड़ा परिवर्तित कर दिया जाए तो इस से सड़कों, बसों और रेलमार्गों पर ट्रेनों में भीड़ का दबाव और ट्रैफिक समस्या का मसला काफी कम हो जाएगा.

इस अनोखी पेशकश को सिर्फ मुंबई के नजरिए से नहीं, बल्कि देश के अन्य महानगरों और कई बड़े शहरों के संदर्भ में भी देखने की जरूरत है जहां दफ्तरों का एक निश्चित समय पर खुलना और बंद होना ट्रैफिक के अलावा कई अन्य समस्याएं पैदा कर रहा है. इस से दफ्तरों और कामकाज के लिए एक ही समय पर निकलने वाले युवाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. असल में यह एक बड़ी पहलकदमी की मांग है, जिस के बारे में कई अन्य कारणों से भी देश में पहले भी मांगें उठती रही हैं.

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