इस में दोराय नहीं है कि मुसलिम समुदाय के पिछड़ेपन और बदहाली के लिए खुद मुसलिम वर्ग जिम्मेदार है. इस वर्ग में फैली अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी के साथसाथ इस वर्गविशेष के साथ अन्य धर्मों का उपेक्षात्मक व्यवहार, सरकार की उदासीनता आदि कारण भी इन के विकास में बाधक बन कर खड़े हैं.

इन सभी कारणों का सब से ज्यादा बुरा प्रभाव मुसलिम महिलाओं पर पड़ा है. चाहे प्रश्न उस के पालनपोषण का हो, नौकरी या शादी का या फिर उस के अधिकारों का, हर जगह वह खाली हाथ ही खड़ी नजर आती है.

सोचने वाली बात :  जब एक व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर होगा तो वह अपने परिवार का अच्छी तरह पालनपोषण कैसे करेगा? अगर वह अपनी पत्नी और बेटी बेटे को दोवक्त की रोटी नहीं खिला सकता तो उन्हें पढ़ाएगा कहां से? नौकरी और शादी तो बहुत दूर की बात है.

मुख्यधारा से जोड़ा जाए : यह बहुत जरूरी है कि मुसलिम वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए. अशिक्षा जो इस वर्ग की सब से बड़ी कमी है, उसे दूर किया जाए.

बदलाव की धीमी प्रक्रिया :  इसे मुसलिम वर्ग की अजीब दशा ही कहेंगे कि आज भी हमारे देश में मुसलिम महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. हो भी कैसे, दशकों से मुसलिम पर्सनल ला बिना किसी विशेष परिवर्तन के स्थिर अवस्था में है. उस में जरूरी बदलाव किया जाना बहुत जरूरी है.

मुसलिम महिला की स्थिति :   बात जब मुसलिम महिलाओं की स्थिति की होती है तो धर्म उस के मार्ग में सब से बड़ी बाधा के रूप में सामने आता है. मामला चाहे पुरुष की 4 शादियों का हो या 3 तलाक का या फिर 2 महिलाओं के बराबर एक मर्द की गवाही का, मुसलिम रहनुमाओं का कर्तव्य बनता है कि वे समय के साथ मुसलिम पर्सनल ला में आवश्यक सुधार करें ताकि मुसलिम महिला अपना सामाजिक, आर्थिक विकास करते हुए अपने अस्तित्व की पहचान कर सके.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...