क्या हम भारतीय कामचोर हैं? क्या यह एक आम भारतीय की आदत है कि वह अलसाया सा रहता है? सरकारी दफ्तरों में तो यह आम नजारा होता है कि कर्मचारी या तो देर से आते हैं, सीट से नदारद मिलते हैं या फिर ऊंघते हुए से दिखाई देते हैं.

हालांकि इधर कुछ वर्षों में देश की कार्यसंस्कृति को ले कर काफी कुछ कहासुना गया है. जैसे, दफ्तरों में बायोमीट्रिक हाजिरी के प्रबंध किए गए हैं, लेकिन जब कभी सरकार के मंत्रियों ने औचक निरीक्षण किया, बहुतेरे कर्मचारियों को अपनी सीट से या तो गायब पाया या फिर उन्हें लेटलतीफी की आदत का शिकार पाया.

बायोमीट्रिक प्रबंधों के बाद भी सरकारी बाबुओं के काम करने की गति में कोई तेजी आई है, यह पता लगाने का कोई सर्वेक्षण तो नहीं हुआ है पर सितंबर 2018 में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सैंपल के रूप में दुनिया के 19 लाख लोगों की रोजाना की शारीरिक सक्रियता का अध्ययन कर के रिपोर्ट पेश की, तो भारत के बारे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

वैसे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अंदाजा लगाया है कि इस वक्त दुनिया में करीब 140 करोड़ लोगों की शारीरिक सक्रियता काफी कम है, लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि भारत के 24.7 फीसदी पुरुषों और 43.3 फीसदी महिलाओं को अपने हाथपांव हिलाने में ज्यादा यकीन नहीं है. खेतीप्रधान और मेहनतकश लोगों के देश के रूप में पहचान बना चुके भारत में ऐसी स्थिति का दिखना चिंताजनक तो है ही, इस से हमारी लुंजपुंज होती कार्यसंस्कृति और कामचोरी की प्रवृत्ति भी झलकती है जो घरों से ले कर दफ्तरों तक बेहद आम हो चली है.

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