हिंदुओं का त्योहार, मुसलमानों का त्योहार, ईसाइयों का त्योहार और सिखों का त्योहार. त्योहार धर्मों में बंटे हुए हैं. हर धर्म के त्योहार अलगअलग हैं. एक धर्म को मानने वाले लोग दूसरे के त्योहार को नहीं मानते. धर्मों की बात तो अलग, एक धर्म में ही इतने विभाजन हैं कि एक धर्म वाले सभी उत्सव एकसाथ मिल कर नहीं मनाते. एक ही धर्म में अलगअलग वर्गों और जातियों के छोटेमोटे उत्सव भी बंटे हुए हैं.

हिंदुओं के त्योहार मुसलमान, ईसाई ही नहीं, नीचे करार दिए गए हिंदू ही मनाने से परहेज करते हैं. मुसलमानों में शिया अलग, सुन्नी अलग, ईसाइयों में कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट की अलग धुन है. हर धर्म में भेदभाव, ऊंचनीच है. श्रेष्ठता और छोटेबड़े की भावना है. यह हमारे त्योहारों के विभाजन की सचाई है यानी त्योहारों पर धर्म ने पूरी तरह कब्जा कर लिया है.

होलीदीवाली जैसे त्योहारों पर धर्र्म की इस कदर पैठ है कि त्योहारों के मूल स्वरूप ही बदल गए हैं. त्योहारों में धर्म के पाखंडी कर्मकांड, दिखावा, नफरत, भेदभाव और हिंसा हावी हो रही है. धर्म ने उत्सवों को कटुता का पर्याय बना दिया है, अलगअलग समुदायों में विभाजित समाज के बीच पाखंडों को अपनाने की होड़ पैदा कर दी है. त्योहारों की मिठास धर्म के वर्चस्व से खट्टेपन में बदल गई है.

त्योहारों पर धर्म के कब्जे ने सामाजिक मेलमिलाप, एकता और समरसता की खाई पाटने के बजाय और चौड़ी कर दी है. एकता, समन्वय और आपस में जुड़ने का संदेश देने वाले त्योहारों के बीच मनुष्यों को बांट दिया गया है. इस विभाजन की वजह से त्योहार अब सामाजिक मिलन के वास्तविक पर्व सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं. त्योहार के वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक महत्त्व को भूल कर धार्मिक, सांस्कृतिक पहलों को सर्वोपरि मान लिया गया है.

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