पश्चिमी उत्तर प्रदेश एक बार फिर सुलग उठा है. इस बार मुजफ्फरनगर की जगह बुलंदशहर निशाने पर है. बुलंदशहर में फैली हिंसा किसी एक दिन की घटना का अंजाम नहीं है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गौ रक्षा के नाम पर धर्मिक सौहार्द को बिगाड़ने का काम लंबे समय से चल रहा है. चुनाव करीब देख कर पहले से धधक रहे माहौल में चिंगारी लगाने का काम बुलंदशहर की घटना ने किया है.

बुलंदशहर की घटना से उत्तर प्रदेश की योगी सरकार निशाने पर है. केवल विरोधी दल ही नहीं भाजपा के अपने नेता और प्रदेश सरकार में सहयोगी दलों ने भी योगी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. योगी सरकार के लिये मुसीबत वाली बात यह है कि अगर वह कड़े कदम उठाती है तो हिन्दू संगठनों पर कारवाई करनी पड़ेगी, ऐसे में बीच का रास्ता निकालने के लिये एक बार फिर गौरक्षा को आवरण बनाया जा रहा है.

योगी सरकार के आने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गोकशी और अवैध कमेलो यानि अवैध वधशालाओं को बंद कर दिया गया. गौकशी के मामलों में आंकड़ों में कमी आई है. अब यह मामले चोरी छिपे हो रहे हैं. इससे यह कानून व्यवस्था के लिये चुनौती बनते जा रहे हैं. योगी सरकार के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुरादाबाद, बिजनौर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और संभल में गौकशी बंद की दी गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन शहरों में गौकशी और अवैध कमेलों का जाल फैला हुआ था. गौकशी पर रोक के बाद जिस तरह से आवारा पशुओं का गांव में आंतक बढ़ा, उससे अब किसान ऐसे पशुओं से तंग आ चुके हैं. अवैध कमेलों को रोकने का काम करने वाले गांव के लोग खामोश हो गये हैं. ऐसे में भैंस के मीट की आड़ में गौकशी होने लगी है.

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