हमारे शिक्षण संस्थान और शिक्षा पद्धति कितनी बदतर हालत में हैं, इस का शर्मनाक उदाहरण देश के प्रतिष्ठित माने जाने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय में सामने आया है. हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय में चुने  गए अखिल भारतीय छात्र संघ के अध्यक्ष अंकिव बसोया को फर्जी डिग्री से प्रवेश लेने के मामले में उस का अध्यक्ष छीन लिया गया और प्रवेश भी रद्द करने की खबर है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी को थिरुवल्लुवर यूनिवर्सिटी से जवाब मिल गया है कि अंकित की डिग्री फर्जी है. वह बुद्घिस्ट स्टडीज डिपार्टमेंट का छात्र था. इस मामले में दिल्ली पुलिस में चुनाव में उन के विरोधी एनएसयूआई के सन्नी छिल्लर ने शिकायत दी थी. विश्वविद्यालय इस मामले में मौन रहा.

हैरानी की बात है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी ने अंकित बसोया को प्रवेश दे दिया, बिना वैरिफाई किए. इस से यूनिवर्सिटी द्वारा प्रवेश देने की गंभीरता का अंदाज लगाया जा सकता है. मजे की बात यह है कि जब अध्यक्ष की डिग्री पर एनएसयूआई ने सवाल उठाया और जांच की मांग की गई तो बहुत धीमी गति से मामले में जांच की कारवाई शुरू हुई.

देश में सालों से फर्जी डिग्रियों का कारोबार धड़ल्ले से फलफूल रहा है. डिग्रियों की वैद्यता जांचने का विश्वविद्यालयों के पास कोई कारगर पैमाना नहीं है. इसी का फायदा फर्जी डिग्रियों के कारोबारी उठा रहे हैं. इन में निश्चिततौर पर मिलीभगत रहती है. तभी यह धंधा पैर फैला रहा है.

फर्जी डिग्री हासिल करना निश्चित ही बेईमानों का शौर्टकट रास्ता है. ये वे लोग हैं जो धन के बल पर सब कुछ पा लेना चाहते हैं. ज्ञान से इन्हें कोई लेनादेना नहीं है. अच्छेअच्छे संस्थानों में ऐसे लोग घुसपैठ बनाने और ऊंचे पद हथियाने में कामयाब हो रहे हैं. ऐसे लोग ज्ञान के बल पर नहीं, तिकड़मों के महारथी होते है.

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