14 अक्तूबर को अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने ‘2014 अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट’ प्रकाशित की, जिसे अमेरिकी विदेशी मंत्री जौन कैरी ने जारी किया. रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय प्रशासन अब भी ‘धार्मिक भावनाओं’ की रक्षा के लिए बनाए गए कानून को लागू कर रहा है. इस कानून का मकसद धर्म के आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करना है. भारत के 29 में से 6 राज्यों में धर्मांतरण कानून लागू है, वहां धर्म के आधार पर हत्या, गिरफ्तारी, जबरिया धर्मांतरण और सांप्रदायिक दंगे होते हैं, साथ ही, धर्म परिवर्तन करने में बाधा पैदा की जाती है.

सीधेसीधे देखा जाए तो रिपोर्ट का सार यह है कि भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव, हत्याएं और गिरफ्तारियां होती हैं एनडीए के मौजूदा शासनकाल में मई 2014 से ले कर दिसंबर 2014 तक धर्म से प्रेरित हमलों की 800 से भी ज्यादा वारदातें हुईं. रिपोर्ट जारी होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता मामलों के अमेरिकी राजदूत डेविड सेपरस्टीन ने भारत को पुचकारते हुए नसीहत दी कि उसे सहिष्णुता और सभ्यता के आदर्शों को अमल में लाना चाहिए इस बाबत नरेंद्र मोदी सरकार को प्रोत्साहित किया जाएगा जिन्होंने काफी देर में दादरी के बिसाहड़ा कांड को ले कर लोगों से सांप्रदायिक सद्भाव की अपील की. रिपोर्ट की अहमियत या माने इसी बात से समझे जा सकते हैं कि किसी मंत्री, नेता, धर्मगुरु या साहित्यकार ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. किसी ने इसे गलत ठहराते हुए एतराज नहीं जताया लेकिन ठीक इसी दौरान साहित्यकारों द्वारा लौटाए जा रहे सम्मानों व पुरस्कार वापसी को ले कर हाहाकार मचा हुआ था. साहित्यकार थोक में सम्मान लौटा रहे थे, खासतौर से वे जिन्हें साहित्य अकादमी ने सम्मानित किया था. इन सभी के तेवर सरकार विरोधी थे. सभी ने एक सुर से दोहराया कि कन्नड़ लेखक एम एम कुलबर्गी की हत्या पर साहित्य अकादमी की चुप्पी नाकाबिले बरदाश्त है और दादरी कांड शर्मनाक है, इसलिए हम विरोधस्वरूप सम्मान पुरस्कार और राशि लौटा रहे हैं.

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