पटना-दीघा रेल लाइन के किनारे ही कई सालों से झोपड़ियां बसी हुई हैं. उसे हटाने की हिम्मत न लोकल प्रशासन और न ही रेल महकमे को है. इतना ही नहीं पटना के बेलीरोड हौल्ट तबेला में और दीघा घाट हौल्ट शराब और शराबियों के अड्डे में तब्दील हो गया है.

पुनाईचक हौल्ट का बुकिंग काउंटर ध्वस्त हो गया है, जबकि शिवपुरी हौल्ट बुकिंग काउंटर पर गाय-भैंस बांधा जा रहा है. पूर्व मध्य रेलवे के इस रूट पर बदइंतजामी की इंतहा ही नजर आती है.

इस रेल रूट पर रेलगाड़ियां छुक-छुक करते हुए नहीं बल्कि रूक-रूक कर चलने को मजबूर हैं. आजादी से पहले ब्रिटिश सरकार ने दीघा घाट से लेकर पटना घाट तक रेलवे ट्रैक बिछाया था. तब से यह ट्रैक कभी अच्छे तो कभी बुरे दौर से गुजरता रहा है.

अंग्रेज सरकार ने इस ट्रैक को व्यापार के लिए से विकसित किया था. आजादी के बाद भी इस ट्रैक का उपयोग व्यापार के लिए किया जाता रहा. इस रूट से दीघा में भारतीय खाघ निगम अनाज भंडारण करने का काम शुरू किया गया.

इसके बाद दीघा-पटना रूट को लावारिस हालत में छोड़ दिया गया. इस रेल लाइन के पास बसी झोपड़ियों के लोग आए दिन ट्रेन के नीचे आकर जान गंवाते रहे हैं या जख्मी होते रहे हैं. इसके बाद भी न सरकार की नींद टूट पा रही है न ही रेलवे को इसकी कोई फिक्र है.

कुछ ऐसा ही हाल पटना से सटे दानापुर अनुमंडल से गुजरने वाले रेलवे लाइनों का हैं. हर हादसों के बाद रेलवे अफसरों की नींद टूटती हैं और पटरियों के आसपास से झोपड़ियों को हटाने का ऐलान करते हैं और मामले के ठंडा होते ही वे भी ठंडे पड़ जाते हैं.

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