संस्कार का अर्थ है शुद्धीकरण की प्रक्रिया यानी संस्कार द्वारा व्यक्ति को शुद्ध करना. हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार हैं जो जीवनपर्यंत चलते हैं और उन्हें बड़े आदरभाव से लिया जाता है. भले ही पितापुत्र, मांबेटी, भाईबहन अशिष्ट व अभद्र हों लेकिन दूसरों को नीचा दिखाने के लिए असंस्कारी कहने में जरा भी संकोच नहीं करते, उलटे ऐसा कह कर बड़े गर्व से अपना सिर ऊपर उठा लेते हैं. 

शुद्धीकरण जितना हमारे देश में होता है उतना दुनिया के किसी देश में नहीं होता. इस के बाद भी हम दुनिया से पिछडे़ हुए हैं. साफसफाई से ले कर चरित्र व नैतिकता के मामले तक, हम आकंठ कालिख पुते हैं. हमारे यहां नाबालिग बच्ची से बलात्कार होते हैं. कमाऊ बेटा बाप को भूखों मारता है. दहेज के लिए महिलाओं को प्रताडि़त किया जाता है. मठों और आश्रमों में शिष्याओं का शारीरिक शोषण होता है व हत्या तक कर दी जाती है. नारायण दत्त तिवारी जैसे अति बुजुर्ग इंसान महिलाओं के साथ नग्न अवस्था में विचरते देखे जाते हैं. खुद को संत कहने वाले आसाराम और उस के बेटे नारायण साईं जैसे लोग महिलाओं का यौनशोषण करते हैं. समाज में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो सिद्ध करते हैं कि ‘संस्कार’ शब्द  सिर्फ नाम का है.

पश्चिम वाले बुरे क्यों

पश्चिम के तौरतरीकों को हम हेय दृष्टि से देखते हैं और खुद को उन से श्रेष्ठ समझते हैं, जबकि शादी के नाम पर हम लड़की वालों से रुपया मांगते हैं. कितने शर्म की बात है कि हमारे देश में लड़का बेचा जाता है. दूसरे शब्दों में, लड़की को जितनी बेहतर सुखसुविधा चाहिए उतनी ही कीमत दे कर लड़का खरीदा जाता है. जिस पर वधू को जलाने का कुकृत्य भी होता है. क्या विवाह संस्कार संपन्न कराने वाले पुरोहित के काम में खोट होता है? वे कैसा शुद्धीकरण कराते हैं कि पति, पत्नी से दहेज न लाने के एवज में मारतापीटता व जलाता है, क्या यही शुद्धीकरण है?

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