इसे बदलाव की बयार का ही नतीजा कहा जा सकता है कि जहां बेटियों को पहले पढ़ाने से परहेज किया जाता था, आज उन्हीं गांवों में बेटियों के साथ बहुएं भी स्कूलकालेज जा रही हैं. राजस्थान राज्य में कोथून, बडली, महाचंदपुरा, बृजलालपुरा, गोपालपुरा, सांवलिया, खेड़ा लदाणा, टूमली का वास जैसे दर्जनों गांवों व ढाणियों की बहुओं ने अब घूंघट को छोड़ कर कलम थाम ली है. अकेले जयपुर जिले के कोथून गांव की ही बात करें, तो यहां 30 से ज्यादा बहुएं पढ़ाई के लिए स्कूलकालेज जा रही हैं. इन में से तकरीबन आधा दर्जन बहुएं तो गांव के ही राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पढ़ रही हैं, वहीं बाकी बहुएं चाकसू कसबे के निजी कालेज व स्कूलों में पढ़ने के लिए जा रही हैं.

ससुराल में रह कर पढ़ाई करने वाली बहुओं ने बताया कि उन का पढ़ाई में शुरुआत से ही मन था, लेकिन मायके के गांवों में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूल नहीं होने व घर वालों ने आगे की पढ़ाई करने की इजाजत नहीं देने की वजह से वे आगे की पढ़ाई नहीं कर सकीं. शादी के बाद जब वे अपनी ससुराल आईं, तो उन्होंने सासससुर से पढ़ने की इच्छा जताई. शुरुआत में नानुकर के बाद आखिरकार वे मान गए. इस गांव में बहुओं को स्कूल भेजने की पहली शुरुआत सरपंच रह चुके श्योनारायण चौधरी के घर से हुई. उन्होंने अपने परिवार की एक बहू रीना का गांव के ही सरकारी स्कूल में दाखिला कराया.

शादी के बाद बहू रीना स्कूल जाती थी. साल 2011 में गौने के बाद जब बहू घर आई, तो उस ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई. इस पर उन्होंने उस का दाखिला गांव के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया. इस के बाद उन के गांव समेत आसपास के गांवों व ढाणियों के लोग भी अपनी बहुओं को स्कूल भेजने लगे. स्कूल जाने वाली बहुओं सावित्री, टीना, मंजू, संतोष वगैरह ने बताया कि वे भी शहरी लड़कियों की तरह पढ़लिख कर अपने परिवार का हाथ बंटाना चाहती हैं, जो तालीम से ही मुमकिन हो सकता है. गांव की कई बहुएं तो पढ़लिख कर पुलिस और सरकारी टीचर की नौकरी भी कर रही हैं. इस काम में उन के पति व मां भी उन का साथ दे रहे हैं.

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