मनुष्य के कर्म उस के विचारों की सब से अच्छी व्याख्या होती है. काम ही मनुष्य को रचनात्मक खुशी प्रदान करता है. तो फिर क्यों न हम निष्क्रियता को त्याग कर काम की कीमत समझें व समाज और देश की समृद्धि में भागीदार बनें.

देश महान बनता है देशवासियों के कर्म से. जितने मेहनती लोग उतना ही संपन्न देश. जापान इस का अच्छा उदाहरण है. आज समूचा विश्व इस सचाई को जानता है कि जापान के कर्मचारियों में काम के प्रति ईमानदारी है. वहां के लोगों की राष्ट्रीय भावना और काम के प्रति समर्पण का ही यह नतीजा है कि छोटा सा जापान आर्थिक संपन्नता के मामले में विशालकाय अमेरिका और चीन को टक्कर दे रहा है. हालांकि काम को महत्त्व देने के मामले में अमेरिका भी पीछे नहीं है. हाल ही में हुए एक औनलाइन सर्वे के अनुसार, अमेरिका के 40 प्रतिशत से अधिक छात्र अपनी शिक्षा के दौरान ही काम करना शुरू कर देते हैं. और इस तरह वे अपनी कर्मठता से देश व समाज के विकास में शिक्षा का सदुपयोग करते हैं.

दुनिया में सब से ज्यादा युवा भारत में हैं और उन की आय पूरे विश्व के युवाओं में सब से कम है. और जहां छोेटे से देश जापान में एक भी गरीब नहीं है या यों कहें कि वहां ‘गरीबी की रेखा’ का अर्थ कोई नहीं जानता, वहीं संसाधनों से भरपूर विशाल देश भारत में वर्ष 2011-12 के आंकड़ों की बात करें तो 21.9 प्रतिशत जनता गरीबी की रेखा के नीचे जीवन गुजार रही थी.

भारत में संसाधनों की अधिकता होने के बावजूद ऐसे हालात क्यों हैं? आखिर क्या कारण है कि जापान जैसा छोटा देश विकास के मामले में भारत के साथ विश्व के दूसरे बड़े देशों को भी काफी पीछे छोड़ चुका है?

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