सीलन भरे, दड़बेनुमा छोटेछोटे कमरे उन कमरों में 2-3 चौकियां, हवा आनेजाने के लिए ठीक से खिड़कियां तक नहीं, गंदे बाथरूम व टौयलेट, संकरी सीढि़यां, दीवारों और छतों से ढहते प्लास्टर, रंगरोगन का नामोनिशान नहीं, अंदर और जहांतहां बाहर बिजली के लटकते तार, पानी की तरह बेजायका चाय, गंदी पड़ी पानी की टंकियां, गेट पर लगा बड़ा सा फाटक और वहां पर सिक्योरिटी के नाम पर खड़ा बूढ़ा व कमजोर गार्ड. कुछ ऐसी है पटना के गर्ल्स होस्टल्स की पहचान. ज्यादातर गर्ल्स होस्टल्स की ऐसी हालत है कि बाहर से देखने पर अजीब सा रहस्यमयी वातावरण नजर आता है. टूटेफूटे पुराने मकानों के कमरों में लकड़ी या प्लाईबोर्ड से पार्टिशन कर के छोटेछोटे कमरों का रूप दे दिया गया है. सीलन भरे कमरों में न ही ढंग से रोशनी का इंतजाम है, न पानी और साफसफाई का. खानेपीने की व्यवस्था काफी लचर है.

खजांची रोड के एक गर्ल्स होस्टल में रहने वाली प्रिया बताती है कि 8×8 फुट के कमरे में 3 चौकियां लगी हुई हैं, खिड़की का नामोनिशान नहीं है. खाने के लिए 2 हजार रुपए हर महीने लिए जाते हैं और घटिया चावल और उस के साथ दाल के नाम पर पानी दिया जाता है. सब्जी के रस में आलू या गोभी ढूंढ़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

दरअसल, पटना में कोचिंग के कारोबार के साथ कई धंधे चल रहे हैं. कोचिंग संस्थानों के आसपास गर्ल्स होस्टल, बौयज होस्टल, मैस, किताबकौपियों की दुकानें, टिफिन वालों का कारोबार फलताफूलता रहा है. पटना के महेंदू्र, मुसल्लहपुर हाट, खजांची रोड, मखनियां कुआं, नया टोला, भिखना पहाड़ी, कंकड़बाग, राजेंद्रनगर, बोरिंग रोड, कदमकुआं, आर्य कुमार रोड, पीरमुहानी आदि इलाकों में कोचिंग सैंटर और होस्टल्स की भरमार है. शहर में करीब 3 हजार से ज्यादा छोटेबड़े होस्टल्स हैं. उन का करोबार करोड़ों रुपए का है.

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