बच्चे अपने अधिकारों की लड़ाई खुद नहीं लड़ सकते. वे वोटर नहीं होते हैं. ऐसे में बहुत सारे राजनीतिक दल उन की लड़ाई नहीं लड़ते. कई घरपरिवार बच्चों का बचपन छीन कर उन को मेहनतमजदूरी में लगा देते हैं जिस से वे न अपना बचपन जी पाते हैं, न ही अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर पाते हैं. बच्चों के अधिकार और जरूरतों को ले कर सरकारी स्तर पर बहुत सारी योजनाएं चल रही हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर उन का बहुत प्रभाव नहीं पड़ रहा है. 2005 में बाल अधिकार ऐक्ट पास हुआ पर बाल आयोग का गठन 2013 में किया गया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समाजसेवी, राजनेता व महिला मुद्दों की जानकार जूही सिंह को बाल आयोग का पहला अध्यक्ष बनाया. जूही सिंह ब्यूरोक्रैट परिवार से हैं. मूलरूप से वे फैजाबाद जिले की रहने वाली हैं. लखनऊ से ले कर लंदन तक उन की पढ़ाई हुई है. पेशे से चार्टर्ड अकाउंटैंट जूही सिंह से खास बातचीत हुई. पेश हैं अंश :

बाल आयोग बच्चों की किस प्रकार मदद कर सकता है?

बच्चे के गर्भ में आने से ले कर 18 साल की उम्र तक उस के जो भी  अधिकार हैं, वे बाल आयोग के दायरे में आते हैं. इन में बच्चों का न्यूट्रीशन, खानपान, पढ़ाई और उन के खिलाफ होने वाले अपराध सभीकुछ शामिल हैं. बाल आयोग सरकारी विभागों से बच्चों के लिए चल रही योजनाओं की प्रगति का हिसाब मांग सकता है, उस की जांच कर सकता है. बेहतर ढंग से बच्चों के अधिकारों को कैसे समझा जाए, इस की रिपोर्ट बाल आयोग के द्वारा सरकार और शासन को सौंपी जाती है.  

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