कई बार अच्छे कदम भी जल्दबाजी में परेशानी का सबब बन जाते हैं. नीट इस की मुफीद मिसाल है. नीट यानी एनईईटी को ‘नैशनल एलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट’ के नाम से जाना जाता है. केंद्र सरकार चाहती है कि मैडिकल ग्रेजुएशन करने वाले सभी छात्र एक कौमन टैस्ट पास करने के बाद अपनी पढ़ाई करें. केंद्र ने इस को राज्यों में भी लागू किया है, जिस से सभी राज्य अलग से ऐंट्रैंस टैस्ट न ले कर नीट के जरिए ही छात्रों को मैडिकल की पढ़ाई में प्रवेश दें. केंद्र ने नीट को लागू किया तो कई राज्यों में इस का विरोध हुआ. कई राज्य सरकारें इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गईं पर उन को वहां से राहत नहीं मिली. केंद्र सरकार ने जिस तरह से हड़बड़ी में नीट को लागू किया उस से केवल राज्य सरकारें ही परेशान नहीं हुईं, बल्कि टैस्ट देने वाले छात्र भी प्रभावित हुए. बदले पैटर्न में छात्रों को प्रवेश परीक्षा देने में परेशानी हुई. तमाम छात्रों ने परीक्षा छोड़ भी दी.

नीट के पहले पूरे देश में मैडिकल कोर्स में प्रवेश के लिए अलगअलग

90 परीक्षाएं आयोजित की जाती थीं. सीबीएसई बोर्ड, एआईपीएमटी यानी औल इंडिया प्री मैडिकल टैस्ट का आयोजन करता था. इस के अलावा

हर राज्य में अलगअलग मैडिकल प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन होता था. यही नहीं, कुछ प्राइवेट कालेज अलग से अपने लिए टैस्ट आयोजित कराते थे. उत्तर प्रदेश सरकार सीपीएमटी टैस्ट अलग से कराती है. अब सभी तरह की परीक्षाओं की जगह केवल एक ही परीक्षा का आयोजन होना है. राज्य सरकारें और प्राइवेट कालेज नीट के लिए अभी तैयार नहीं थे. उत्तर प्रदेश में मैडिकल ऐंट्रैंस टैस्ट देने वाले बच्चे सीपीएमटी की तैयारी कर रहे थे. केंद्र सरकार के फैसले के बाद इन बच्चों को नीट में शामिल होना पड़ा जिस की तैयारी का उन को पूरा समय नहीं मिला था.

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