मंगलवार, 20 मई, 2014 की सुबह. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के घंटाघर कोतवाली इलाके में जटवाड़ा के 67 वर्षीय बुजुर्ग इकबाल मलिक नमाज पढ़ने जा रहे थे. उन के घर से कुछ दूर एक पगलाए सांड़ ने उन्हें पहले तो टक्कर मारी, फिर अपने सींग उन के पेट में घुसा कर बुरी तरह घायल कर दिया.

इकबाल मलिक को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इस बीच उन की मौत हो गई. उधर, वह सांड़ इतना बेकाबू हो गया था कि उस ने एक आटोरिकशा पर हमला कर दिया. लेकिन आटोरिकशा ड्राइवर की होशियारी से वह सांड़ उस में सवार लोगों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाया.

छोटे कसबों से ले कर मैट्रो शहरों तक में आवारा पशुओं के ऐसे कातिलाना कहर की खबरें अकसर अखबारों की सुर्खियां बनती रहती हैं, फिर भी उन पर लगाम नहीं कसी जा रही. अगर कानून कुछ सख्ती दिखाता भी है तो कुछ दिनों तक तो आवारा पशुओं को पकड़ने की मुहिम चलती है लेकिन फिर मामला ठंडा पड़ जाता है.

आवारा पशुओं के चंगुल से दिल्ली को छुड़ाने के लिए साल 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि आवारा पशु पकड़ो और 2 हजार रुपए पाओ. तब कोर्ट ने यह भी कहा था कि राजधानी की सड़कों पर आवारा पशुओं को पकड़ने में नगरनिगम पूरी तरह नाकाम रहा?है.

आज 9 साल बाद भी देश की राजधानी को आवारा पशुओं से छुटकारा नहीं मिल पाया है. यहां का आयानगर गांव इस बात की जीतीजागती मिसाल है. वहां के सर्वोदय स्कूल के पास बनाया गया डीटीसी बस टर्मिनल का शैल्टर आवारा गायभैंसों की आरामगाह बना दिखाई देता है. वे वहां बड़े मजे से जुगाली करती रहती हैं, जबकि मुसाफिरों को धूप में खड़े हो कर बस का इंतजार करना पड़ता?है.

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