शिक्षा अधिकार कानून के तहत देश में रहने वाले गरीब बच्चों को यह अधिकार दिया गया है कि वे भी अच्छे व महंगे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर सकें. साल 2009 में जब से केंद्र सरकार ने इस कानून को लागू किया उसी समय से प्राइवेट स्कूलों ने इस का विरोध शुरू कर दिया था. साल 2012 में उच्चतम न्यायालय ने इस को पूरे देश में लागू कर दिया. स्टेट औफ नेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा अधिकार कानून के तहत देश के प्राइवेट स्कूलों में 21 लाख सीटें कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए रखी गई हैं. इन में से 6 लाख यानी करीब 30 फीसदी केवल उत्तर प्रदेश में हैं. 24 मार्च, 2015 तक 6 लाख सीटों में से केवल 54 ही दाखिले हो सके हैं. जिस समय शिक्षा अधिकार कानून का मसौदा बना था उसी समय प्राइवेट स्कूलों की लौबी इस में ऐसे नियम बनवाने में सफल हो गई जो शिक्षा अधिकार कानून के लागू होने में बाधा बने हैं.

3 दिसंबर, 2012 को सरकार द्वारा जारी शासनादेश के नियम 6 के अनुसार, गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश से पहले उन के पड़ोस के सरकारी स्कूल में दाखिला दिए जाने का प्रयास किया जाएगा. अगर उन को वहां दाखिला नहीं मिलता है तो वे शिक्षा अधिकार कानून की धारा 12 के तहत प्राइवेट स्कूलों में दाखिला पा सकेंगे. यह शासनादेश शिक्षा अधिकार कानून को लागू करने की राह में बाधा बना हुआ है. शिक्षा अधिकार कानून के साथ शुरू से ही खिलवाड़ होता आ रहा है. जब इस कानून को पूरे देश में लागू किया गया तो इस का खर्च प्रदेश सरकारों से उठाने के लिए कहा गया था. इस के चलते राज्य सरकारों ने इस में रुचि नहीं ली. अप्रैल 2014 में केंद्र सरकार ने शिक्षा अधिकार कानून को सर्व शिक्षा अभियान से जोड़ दिया, जिस के बाद राज्यों का खर्च केंद्र सरकार ने अपने ऊपर ले लिया.

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