शिक्षा के लिए समर्पित लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के पूर्व प्रमुख डा. जगमोहन सिंह  वर्मा (72) का मृत शरीर अब मैडिकल स्टूडैंट्स के काम आएगा. प्रो. जगमोहन सिंह का निधन 30 जनवरी, 2017 को सुबह हो गया. पत्नी कुसुम लता सिंह ने बताया कि डा. जगमोहन सिंह ने 31 अगस्त, 2016 को देहदान के लिए पंजीकरण कराया था.

उन की आखिरी इच्छा थी कि जो शरीर जिंदगीभर घरपरिवार और बच्चों को शिक्षित करने के काम आया, वह प्राण त्यागने के बाद मैडिकल छात्रों के काम आ सके, ताकि वे कुछ नया सीख सकें. मरणोपरांत नेत्रदान तथा देहदान का संकल्प होना चाहिए. किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं, पराया दर्द जो अपनाए उसे इंसान कहते हैं.

परोपकार की भावना

डा. शिवशंकर प्रसाद पिछले करीब 30 सालों से गरीब और जरूरतमंद लोगों का केवल 10 रुपए की फीस ले कर इलाज कर रहे हैं. बिहार के नालंदा जिले में चल रहा उन का सुहागी क्लिनिक गरीब मरीजों के लिए अंतिम उम्मीद बन गया है. उन्होंने वर्ष 1986 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुहागी क्लिनिक नाम से एक अस्पताल शुरू किया. ऐसा करने के पीछे उन का व्यक्तिगत दुख छिपा हुआ है. जब उन की उम्र महज 1 साल थी, तब मां का निधन हो गया था. उन की मां को टिटनैस हो गया था. पैसे की कमी के कारण उन की मां का इलाज नहीं हो सका था और उन की मृत्यु हो गई. पिताजी से जब यह बात उन को पता चली तो बचपन में ही उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें डाक्टर बनना है. उन्होंने यह भी फैसला किया कि डाक्टर बनने के बाद वे किसी गरीब को पैसे की कमी के कारण मरने नहीं देंगे.

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