भेदभाव के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा धारण की गई टोपी को वोट के खेल में खूब भुनाया जाता है. कभी देशभक्ति का प्रतीक समझी जाने वाली यह टोपी फिल्मों में विलेन के सिर तक जा पहुंची और कभी रैंप पर. आजकल लोग टोपी के जरिए अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा भी पूरी करने में लगे हैं.

भारतीय राजनीति और आंदोलन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है गांधी टोपी. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह टोपी लोकप्रिय हुई और देशभक्ति का एक प्रतीक चिह्न बन गई. बाद में यह कांगे्रसी विचारधारा के साथ जुड़ गई. फिर इस की लोकप्रियता का ज्वार ऐसा उतरा कि एक समय ऐसा आया, जब हिंदी सिनेमा में राजनीतिक विलेन को गांधी टोपीधारी दिखाया जाने लगा. यह कह सकते हैं कि फिल्मों ने गांधी टोपी को एक बड़े हद तक बदनाम ही किया है.

आजादी के 66 साल के बाद अब समाजसेवी अन्ना हजारे की अगुआई में अगस्त 2011 को आम जनता ने इस टोपी पर अपनी आस्था जताई. बड़े पैमाने पर भारत के विभिन्न शहरों में गांधी टोपी पहन कर देश का आम आदमी सड़क पर उतरा और ‘मैं अन्ना हूं’ का उद्घोष करते हुए भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में शामिल हुआ. तब यह अन्ना टोपी गांधी टोपी के समानांतर खड़ी हो गई.

गौरतलब है कि गांधी के नाम से जुड़ी यह विशिष्ट टोपी भारत के कुछ राज्यों की वेशभूषा का एक अहम हिस्सा रही है. खासतौर पर गुजरात और महाराष्ट्र के दूरदराज के गांवों में तो यह आज भी पहनी जाती है. लेकिन भारत के राजनीतिक इतिहास की बात की जाए तो वकालत की पढ़ाई के लिए दक्षिण अफ्रीका गए महात्मा गांधी ने पहली बार इसे वहीं धारण किया था. वहीं उन्होंने भारतीयों के प्रति बरते जाने वाले भेदभाव के विरोध में सत्याग्रह कर अपनी गिरफ्तारी दी थी. लेकिन वहां जेल में भी उन्होंने पाया कि भारतीय कैदियों के साथ भेदभाव के तहत इस तरह की टोपी को पहनना अनिवार्य था. इस अपमानजनक नियम की याद को ताजा रखने के मकसद से गांधीजी ने इस टोपी को धारण किया. तब से इस विशिष्ट टोपी को गांधी टोपी कहा  जाने लगा.

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