एक लड़की साइंस की स्टूडैंट थी, लेकिन उस के 12वीं के प्री बोर्ड में बहुत कम अंक आए. इस से स्कूल वालों को लगा कि उस का रिजल्ट खराब हो जाएगा. इसलिए उन्होंने लड़की की काउंसलिंग की और उस से आर्ट विषय से 12वीं की परीक्षा देने को कहा. लड़की को इस बात का बुरा तो लगा, लेकिन फिर भी उस ने स्कूल वालों की बात मानी और आर्ट विषय ले कर अच्छी मेहनत कर 12वीं की परीक्षा दी. आर्ट में उस के अच्छे अंक आए. इस के बाद उस ने ग्रैजुएशन की और सिविल सर्विस की तैयारी पूरी मेहनत से की. पहली बार में ही उस ने सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर ली और भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुन ली गई. आज वह उत्तर प्रदेश में जिलाधिकारी यानी डीएम के रूप में सरकारी सेवा में है.

अगर वह प्री बोर्ड में फेल होने के बाद निराश हो गई होती और आगे पढ़ाई में मन नहीं लगाती तो शायद वह फिसड्डी की फिसड्डी ही रह जाती. ऐसे 1-2 नहीं बल्कि तमाम उदाहरण हैं, जिन में फिसड्डी समझे जाने वाले बच्चों ने बाद में पूरी दुनिया में अपना नाम कमाया है. अगर किसी काम में सफलता नहीं मिली है तो उस में निराश होने की जरूरत नहीं है. जरूरत इस बात की है कि और अधिक मेहनत से उस काम को करें, जिस से सफलता निश्चित है. विज्ञान, खेल, फिल्म, राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से लोग अनेक बार असफल होते हैं. इस के बाद भी हार नहीं मानते और अंत में एक समय ऐसा आता है जब वे सफल जरूर होते हैं. परेशानी वहां खड़ी होती है जहां असफल होने के बाद बच्चे हताश और निराश हो कर सफलता के लिए प्रयास करना ही छोड़ देते हैं. जरूरत इस बात की होती है कि अध्यापक, साथी और पेरैंट्स बच्चों को निराश न होने दें और ऐसे बच्चे भी खुद को फिसड्डी न समझें.

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