गोरी हैं कलाइयाँ, ’ गोरे गोरे  मुखड़े पे काला काला चश्मा ‘आजा पिया तोहे प्यार दूं गोरी बैयाँ तोपे वार दूँ चिट्टियाँ कलाइयाँ वे ,ये काली काली आँखें ये गोर गोरे गाल ...... गोरेपन का  जादू कुछ इस कदर हम सब पर छाया  हुआ है कि फ़िल्में भी इससे अछूती नहीं रह पायीं. फिल्म-दर-फिल्म, पत्रिका-दर-पत्रिका, विज्ञापन-दर-विज्ञापन, होर्डिंग-दर-होर्डिंग गोरेपन का प्रचार हो रहा है . शादी के विज्ञापनों में भी "फ़ेयर एंड ब्यूटीफुल" यानी "साफ़ और सुन्दर" एक कसौटी बन चुकी है. खूबसूरती के साथ गोरेपन की चाहत मानो जीवन के हर कदम पर  अनिवार्यता  या कहें ओबसेशन बन चुका है. गोरे रंग के  इस ओबसेशन  के खिलाफ  बोलीवूड फिल्म अभिनेत्री नंदिता दास ने  एक अभियान भी शुरू किया था ‘स्टे अनफेयर,स्टे ब्यूटीफुल’ यानी सांवली बनी रहो, खूबसूरत बनी रहो.

अब घाना जैसे छोटे से देश ने गोरेपन के ऑब्सेशन के खिलाफ एक  ऐसा कदम उठाया है, जो अभी तक भारत नहीं कर पाया है. इंडिया और दूसरे एशियन देशों के बाद अफ्रिका में भी लोग गोरेपन को लेकर काफी क्रेज़ी हैं, जहां औरतें गोरी होने के लिए केमिकल्स का सहारा ले रही हैं. एक रीसर्च के मुताबिक 75 प्रतिशत नाइजीरियन औरतें, 27 प्रतिशत सेनेगलीज़ औरतें और 33 प्रतिशत साउथ ऐफ्रिकन औरतें नियमित तौर पर स्किन-लाइटनिंग प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं. (वहीं इडिया में बिकने वाले कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में से आधी फेयरनेस क्रीम्स हैं.)

कई शोधों से पता चला है कि फेयरनेस क्रीम्स स्किन में डिसकलरेशन लाता है और इसे स्किन कैंसर से भी जोड़कर भी देखा गया है, जिसके चलते फ़ूड एंड ड्रग्स अथोरिटी  ने इनकी बिक्री पर रोक लगा दी. इस बैन के पीछे का कारण सिर्फ हेल्थ पर पड़ता  बुरा असर नहीं है बल्कि गोरेपन को लेकर लोगों के दिमाग में बैठा फितूर भी  है जो शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से काफी खतरनाक है.नंदिता दास की ही तरह  घाना  की ऐक्ट्रेस अमा के अबेब्रेसे ने  भी गोरेपन को प्रमोट करते हुए ऐड्स देखने के बाद ‘लव यूअर नेचुरल स्किन टोन’ नाम से एक कैंपेन भी शुरू किया था.

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