विश्वभर में हिंसा का रंग और सुर्ख हो रहा है. अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस से ले कर भारत तक कुदरती इंसानी रंगों की आपसी नफरत और गहरी होती जा रही है. ग्रेटर नोएडा में नाइजीरियाई छात्रों के साथ हुई हिंसा से भारत की वर्ण, रंगभेदी सोच उजागर हुई है.

मामले की गूंज सोशल मीडिया से ले कर भारतीय संसद और अफ्रीकी देशों तक पहुंच गई. अफ्रीकी देशों ने नाइजीरियाई छात्रों पर हुए हमले को नस्लभेदी हमला करार दिया है. अफ्रीकी राजदूतों के समूह की बैठक में हमले को विदेशियों से घृणा और नस्लवादी सोच से युक्त बताया गया. हालांकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जांच के आदेश दे दिए पर सरकार इसे नस्लीय हमला मानने को तैयार नहीं है.

क्या है मामला

24 मार्च को ग्रेटर नोएडा की एनसीजी रैजिडेंसी सोसायटी में रहने वाला 19 वर्षीय मनीष खारी गायब हो गया तो उस के परिवार ने कासना पुलिस स्टेशन में कुछ नाइजीरियाई युवकों के खिलाफ अपहरण व हमले की रिपोर्ट दर्ज कराई.

अगले दिन मनीष अपने घर के पास बेहोशी की हालत में मिला. उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां उसे ओवरडोज ड्रग सेवन के संदेह में मृत घोषित कर दिया गया. पुलिस ने मामले में 5 नाइजीरियाइयों को पकड़ा. अगले दिन नाइजीरियाइयों के समूह ने कासना पुलिस स्टेशन के बाहर पकड़े गए युवकों को छोड़ने के लिए विरोध प्रदर्शन किया. पुलिस को इन के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला.

नाइजीरियाइयों को छोड़ने के बाद 27 मार्च को एसएसपी कार्यालय के बाहर स्थानीय लोग जमा हुए और उन की गिरफ्तारी के लिए परी चौक को ब्लौक कर दिया गया. कैंडल लाइट प्रदर्शन किया गया और इसी दौरान कई नाइजीरियाई छात्रों की पिटाई कर दी गई.

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