मेरे घर में 4 टैलीविजन हैं. एक केबल कनैक्शन से मात्र 200 रुपए में अभी तक मेरा काम आराम से चल रहा था. ठीक 1 मार्च को कई सारे मुख्य चैनल आने बंद हो गए. इस के बाद केबल वाला पेमैंट लेने आया और सैट टौप बौक्स लगवाने के लिए पूछने लगा. मैं ने सोचा लगवाना तो है ही, सो उस से कह दिया. वह बोला आप के यहां 4 टीवी हैं, लिहाजा 4,800 रुपए दे दें. अब हर माह आप को 600 रुपए किराया देना होगा. मैं ने कहा कि इस से अच्छा तो डिश लगवा ली जाए तो जवाब मिला कि वह भी 4 अलगअलग लगवानी पड़ेंगी और किराया भी हर माह कुछ ज्यादा ही देना पड़ेगा.

मैं ने कहा कि सैट टौप बौक्स की कीमत तो टीवी में 799 रुपए आ रही है. तो वह बोला कि आप अपनेआप खरीद लो. हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है. काफी नोकझोंक के बावजूद वह नहीं माना और हार कर मुझे 4,800 रुपए देने पड़े. अब हर माह मेरी जेब पर 400 रुपए महीने का अतिरिक्त भार पड़ गया. पिक्चर की क्वालिटी में किसी भी तरह का मुझे जरा भी फर्क महसूस नहीं हुआ. सिर्फ चैनल बढ़ गए. बढ़े हुए चैनलों में आधे से ज्यादा बकवास थे. यह कहानी मेरी ही नहीं बल्कि हर टीवी उपभोक्ता की है, जिस की जेब पर सरकार द्वारा अनावश्यक रूप से अतिरिक्त भार डाल दिया गया है.  हालत यह है कि एक औसत निम्न वर्ग के पास खाने को रोटी भले न हो, टैलीविजन जरूर मिल जाएगा. बहरहाल, मैं ने सोचा कि घर से बाहर निकल कर मालुमात तो करूं कि ऐसा मेरे साथ ही किया गया है या सभी के साथ हो रहा है. महल्ले में निकल कर मालूम किया तो मैं हैरान रह गया.

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