बीसीआई की निरंकुश नीतियों और बेलगाम रवैए के चलते देशभर में कई विधि महाविद्यालय बंदी के कगार पर हैं. कुछ राज्यों में तो कई महाविद्यालयों पर ताला भी लग चुका है. जाति व राजनीति का चश्मा पहने बीसीआई की तानाशाही कानून और कानूनी शिक्षा के भविष्य के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है.

‘‘अगर हालात यही रहे और जल्द कुछ न किया गया तो साल 2014 तक मध्य प्रदेश में विधि महाविद्यालयों की तादाद 15 भी नहीं रह जाएगी. अभी तक 47 में से  25 कालेजों की मान्यता रद्द की जा  चुकी है और इस का जिम्मेदार  बीसीआई यानी बार काउंसिल औफ इंडिया को ही ठहराया जाएगा.’’ ऐसा मध्य प्रदेश के शिवपुरी शहर में स्थित एसएमएस स्नातकोत्तर महाविद्यालय की जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष अजय खेमरिया बेहद तल्ख लहजे में कहते हैं.

कानून और कानूनी शिक्षा के लिहाज से बात वाकई चिंता की है. इस का सारा खमियाजा छात्रों को उठाना पड़ रहा है. राज्य में धड़ल्ले से बंद हो रहे विधि महाविद्यालयों की चिंता किसी को है, ऐसा भी नहीं लग रहा.  बीसीआई की खलनायकी भूमिका क्या है और इस के माने क्या हैं, इस से ज्यादा दिलचस्पी की बात यह है कि विधि महाविद्यालयों का आर्थिक संचालन राज्य सरकार उच्च शिक्षा विभाग के जरिए करती है लेकिन विधि महाविद्यालयों के मानक तय करने का हक उस के पास नहीं है. तमाम कोशिशों व इन पर पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार क्यों नहीं आ रहा, इस यक्ष प्रश्न का जवाब मध्य प्रदेश के बंद होते विधि महाविद्यालय इस लिहाज से भी हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता तय करने वाली एजेंसियां बेलगाम हो कर नियम व शर्तें थोपती हैं. बीसीआई उन का अपवाद नहीं है.

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