‘‘अब इन नेताओं की बात न पूछिए साहब, बताते हुए जीभ गंधाती है. इन्हें अव्वल दरजे का चोर बेवजह नहीं कहा जाता,’’ जबलपुर-इंदौर ऐक्सप्रैस के सेकंड एसी कोच के एक अटैंडैंट ने बात करने पर बताया, ‘‘अभी हफ्ताभर पहले की बात है, मैं गाड़ी ले कर इंदौर जा रहा था. जबलपुर से भारतीय जनता पार्टी के एक नेताजी अपनी पत्नी के साथ सवार हुए. खूब मशहूर हैं वे और इस रूट की ट्रेनों में अकसर चलते हैं. हमेशा भोपाल के पहले हबीबगंज स्टेशन पर उतरते हैं. रोज की तरह मैं ने पैसेंजर्स को ओबैदुल्लागंज से ही भोपाल आने की खबर देते बैडरोल समेटने शुरू कर दिए. नेताजी के कूपे से एक चादर कम मिली तो मैं घबरा उठा क्योंकि कंबल, चादर, तकिया या नैपकिन गुम हो जाए तो उस का पैसा हमें भरना पड़ता है. ठेकेदार हम पर कोई रहम नहीं करता.’’
यह अटैंडैंट आगे बताता है, ‘‘आमतौर पर आजकल चादर वगैरह कम गुम होती हैं. बारीकी से इधरउधर देखने पर वह चादर मुझे नेताजी की पत्नी के थैले से झांकती मिली तो मैं भौचक रह गया कि इतने बड़े आदमी की पत्नी चादर चुरा रही है. इस पर भी चिंता यह कि अगर यह थैले में ही चली गई तो 400 रुपए का चूना मुझे लगेगा. लिहाजा, मैं टिकट चैकर के पास गया और उन्हें सारी बात बताई.
‘‘पहले तो उन्होंने यकीन ही नहीं किया, उलटे मुझे डांटते हुए बोले, ‘मालूम है क्या कह रहा है, इतने बड़े नेता की पत्नी, मामूली चादर चुराएगी, कौन मानेगा? और चुरा भी ली है तो यकीन कौन करेगा.’