पिछले 2 वर्षों में एक के बाद एक हिट फिल्में देने वाली बौलीवुड की टौप ऐक्ट्रैस दीपिका पादुकोण की फिल्मों ने चाहे रिकौर्डतोड़ कमाई की हो लेकिन फिर भी दीपिका खुश नहीं थीं. उन्हें कोई गम था और वह इस हद तक पहुंच गया था कि वे ठीक से शूटिंग भी नहीं कर पा रही थीं. दरअसल, दीपिका डिप्रैशन की शिकार हो गई थीं. एक साक्षात्कार में खुद दीपिका ने इस बात का खुलासा किया. दीपिका, जो फिल्म इंडस्ट्री में अपने जिंदादिल स्वभाव बेहतरीन अदाकारी के लिए जानी जाती हैं, को डिप्रैशन से बाहर आने के लिए मैडिटेशन का सहारा लेना पड़ा. बाद में वे एंग्जाइटी और डिप्रैशन के प्रति जागरूकता फैलाने का काम भी करने लगीं.

हमारी जिंदगी में कल क्या हो, यह कोई नहीं जानता. इंसान अमीर हो या गरीब, सफल हो या असफल, जीवन में किसी भी मोड़ पर ऐसी परिस्थितियां आ सकती हैं जब व्यक्ति स्वयं को बिलकुल हताश, तनहा और उलझा हुआ महसूस करता है.

इस कठिन समय व परिस्थिति में हिम्मत न हारना, उस से उबरना, हौसला बनाए रखने का जज्बा जिन लोगों में होता है वे हर तकलीफ आसानी से पार कर जाते हैं और दूसरों के लिए एक मिसाल बन जाते हैं.क्रिकेट खिलाड़ी युवराज सिंह का उदाहरण हमारे सामने है. युवराज सिंह को 2012 की शुरुआत में कैंसर होने की बात सामने आई. उन के फेफड़े में ट्यूमर था जो कैंसरस था. अमेरिका के बोस्टन शहर में उन का इलाज चला. उन की कीमोथैरेपीज हुईं, बाल झड़े, दर्द के दौर से गुजरना पड़ा. मार्च 2012 में अंतिम कीमोथैरेपी होने के बाद वे भारत वापस आए. यह उन का जज्बा ही था कि वापसी के चंद महीनों बाद उन की भारतीय क्रिकेट टीम में वापसी हो गई और उन्होंने 2012 में ही शानदार खेल का प्रदर्शन किया. युवराज सिंह अपनी किताब, ‘द टैस्ट औफ माई लाइफ’ में लिखते हैं, ‘‘जब आप बीमार होते हैं तो पूरी तरह निराश होने लगते हैं. कुछ सवाल भयावह सपने की तरह आप के मन में उठते हैं. लेकिन आप को सीना ठोक कर इन मुश्किल सवालों व हालात का सामना करना चाहिए.’’

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