67वें गणतंत्र दिवस के ठीक अगले दिन 27 जनवरी की सुबह का वक्त था. एक दूल्हा सजासंवरा घोड़ी पर सवार था. बराती नाचगा रहे थे. यह ठीक वैसा ही नजारा था, जैसे आम बरातों में होता है, लेकिन सब से अजीब अगर कुछ था, तो वह थी उस बरात में हथियारबंद पुलिस वालों की मौजूदगी. इस नजारे के पीछे अहम वजह यह थी कि दूल्हा दलित था और उसे अगड़ों से खतरा था. अगड़ों का यह फरमान था कि कोई दलित घोड़ी चढ़ा, तो उसे अंजाम भुगतना होगा. गांव में दलित जाति के लोगों को शादी में घोड़ी पर सवार होने की इजाजत कतई नहीं थी. इसी डर की बदौलत दूल्हा बने सुनील के पिता गोरधनलाल ने पुलिस प्रशासन से सिक्योरिटी की मांग की थी.

गोरधनलाल रतलाम, मध्य प्रदेश के संदला इलाके के रहने वाले थे. अगड़ों के फरमान से सहमे दलित परिवार ने घोड़ी पर दूल्हे को चढ़ाने का फैसला कर के सिक्योरिटी मांगी, तो पुलिस की मौजूदगी में चढ़त हो गई.

सुनील घोड़ी पर सवार होने वाला अपने गांव का पहला दलित दूल्हा बन गया. गोरधनलाल खुश थे कि उन की पीढि़यों में पहली बार कोई घोड़ी पर इस तरह सवार हुआ था. बीएसएफ में नौकरी पाने और घोड़ी चढ़ने से सुनील भी खुश था. इस दौरान दर्जनों पुलिस वालों की मौजूदगी के चलते कोई फसाद नहीं हुआ. आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ था, जब इस गांव का कोई दलित घोड़ी चढ़ा था. लेकिन प्रवीण भार्गव को घोड़ी न चढ़ने का मलाल जिंदगीभर रहेगा. दरअसल, प्रवीण की शादी जयपुर, राजस्थान के खिमाड़ा गांव में सीआईएसएफ की कांस्टेबल नीतू के साथ तय हुई थी. नीतू के गांव में किसी दलित दूल्हे को घोड़ी चढ़ने की इजाजत नहीं थी. अगड़ी जाति के लोगों ने इस दबंग परंपरा को कायम रखा हुआ था, जबकि नीतू और प्रवीण ऐसा चाहते थे. इसी के चलते नीतू ने शिकायत करते हुए पुलिस प्रशासनिक इंतजाम करा लिए थे. प्रशासन ने ही घोड़ी का इंतजाम भी किया था.

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