प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुसलिमबहुल मंगोलिया यात्रा और उसी दौरान नई दिल्ली इलाके में मुसलिम शख्सीयतों के नाम दर्शाने वाली कुछ सड़कों के नामपट्ट पर कालिख पोतने की घटना का कोई संयोग नहीं है फिर भी सैकड़ों साल पहले भारत में मंगोलों की घुसपैठ के साथ पड़ी मुगल काल की नींव में मजहबी नफरत का एक और रूप देखा जा सकता है. केंद्र में मोदी सरकार के एक साल पूरा होने के जश्न में विकास के गुणगान के बीच हिंदू कट्टरपंथ की यह ओछी सोच सामने आई. 14 मई को नई दिल्ली इलाके में मुसलिम शख्सीयतों के नाम दर्शाने वाली कुछ सड़कों के नामपट्ट पर कालिख पुती देखी गई तो अनेक लोग हैरान रह गए. सफदर हाशमी रोड, फिरोजशाह रोड, औरंगजेब रोड और अकबर रोड के साइनबोर्डों पर काला रंग पोत कर ये नाम मिटा दिए गए. इस पर नई दिल्ली नगर पालिका के अधिकारियों द्वारा संपत्ति को बिगाड़ने का मामला पुलिस थाने में दर्ज कराया गया.

एफआईआर में किसी का नाम नहीं लिखाया गया लेकिन मामला साफ है. ऐसा करने वालों ने साइनबोर्डों पर जो पोस्टर चिपकाए हैं उन में स्पष्ट लिखा है, ‘भारत में इसलामीकरण मंजूर नहीं, सफर में मुश्किलें आएं तो हिम्मत और बढ़ती है, कोई अगर रास्ता रोके तो जरूरत और बढ़ती है. जय हिंद, जय भारत.’ इस के नीचे ‘शिवसेना हिंदुस्तान’ और इस संगठन के पदाधिकारियों के नाम लिखे हुए थे. मामले को ले कर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने हिंदूवादी कट्टरपंथियों की आलोचना की पर भाजपा और केंद्र सरकार अभी तक चुप हैं. मजे की बात है कि काला रंग पोत कर जिन नामों के प्रति नफरत जताई गई है उन के कामों को नहीं, मात्र मजहब को देखा गया. सफदर हाशमी एक प्रगतिशील कम्युनिस्ट कलाकार, नाटककार, निर्देशक, लेखक, कवि थे. 1989 में साहिबाबाद में एक नुक्कड़ नाटक के दौरान कांग्रेसी कट्टरपंथियों ने उन की हत्या कर दी थी. फिरोजशाह, तुगलक वंश के संस्थापक थे. अकबर को महान मुगल शासक कहा जाता है और उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष शासक माना गया है. उन्होंने  संस्कृत, पालि भाषा की हजारों पांडुलिपियों को न केवल संरक्षित कराया, उन का फारसी में अनुवाद किए जाने का बंदोबस्त भी कराया. औरंगजेब के राजकाज को भी भारत के लिए बुरा नहीं समझा गया है. दिल्ली में इन मुसलिम शासकों के अलावा वीवीआईपी मार्गों का नामकरण बाबर, शाहजहां, सफदरजंग, हुमायूं, सिकंदर, लोदी, शेरशाह सूरी, बहादुर शाह जफर के नामों पर भी है. ये वे क्षेत्र हैं जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के न्यायाधीश तथा अन्य बड़ेबड़े नौकरशाह रहते हैं. इलाके के मार्गों के मुसलिम शख्सीयतों के नामों पर कभी विवाद नहीं हुए. न कभी किसी नेता ने, न किसी संगठन ने विरोध किया. सरकारें बदलीं तो कुछ मार्गों का नाम जरूर हिंदू सामाजिक और धार्मिक नेताओं के नाम पर करा दिया गया पर इन नामों को बदलने की बात भी नहीं उठी.

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