मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के जंबूरी मैदान पर 16 फरवरी को हजारों लोग सिर झुकाए और हाथ बांधे एक धार्मिक जलसे में खड़े थे. इस दिन एक धर्मगुरु शक्तिपुत्र महाराज भक्तों को आशीर्वाद इस बाबत भी दे रहे थे कि उन की नशे की लत छूट जाए. इस नशामुक्ति आशीर्वाद के लिए बाकायदा कैंप लगा कर भक्तों का रजिस्ट्रेशन भी किया गया था और तमाम धार्मिक काम पूजापाठ व आरती वगैरह भी किए गए थे जिन में भक्तों ने दिल खोल कर पैसा चढ़ाया. यह सिलसिला 19 फरवरी तक चला. आखिरी दिन नशा छुड़ाने के लिए एक मानव शृंखला बनाई गई और नशेडि़यों को नशा छोड़ने की नसीहत देते उन से संकल्प भी कराया गया.

इस के बाद लाखों की दक्षिणा नशे से आजादी के नाम पर बटोरते ये महाराज आगे की तरफ बढ़ लिए. मानो, भोपाल में नशे की समस्या हल हो गई हो. अगले दिन 17 फरवरी को महाशिवरात्रि का त्योहार था. इस दिन भोपाल की भांग की दुकानों पर भी बेशुमार भीड़ थी. लोग भांग की गोलियां खा रहे थे, ठंडाई पी रहे थे और नशे में झूमते हरहर महादेव, बमबम भोले और जय भोले शंकर जैसे नारे लगा रहे थे. भीड़भाड़ वाले बाजार न्यू मार्केट में रंगमहल टाकीज के सामने भांग के ठेके पर तो इतने भक्त नशा करने के लिए उमड़े कि ट्रैफिक ही जाम हो गया था.

महज एक दिन के अंतर से दिखे ये 2 नजारे बताते हैं कि धर्म का कारोबार कैसेकैसे फलताफूलता जा रहा है और उस की हकीकत क्या है. एक तरफ एक धर्मगुरु नशे से छुटकारा दिलाने के नाम पर दोनों हाथों से पैसे बटोरता है तो दूसरी तरफ धर्म और शंकर के नाम पर हजारों लोग बगैर किसी हिचक के नशा करते हैं.

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