देश में धर्म के प्रति अंधश्रद्धा का जनून ही है कि जहां पिछले साल 16-17 जून को भीषण प्राकृतिक आपदा ने सैकड़ों जानें लील लीं, वहीं इन दिनों फिर से चारधाम के नाम पर श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है. जी हां, चारधाम की यात्रा जोरशोर से शुरू हो चुकी है और राज्य सरकार भी बढ़चढ़ कर इस की तैयारी में मसरूफ दिख रही है. एक बार फिर धर्म के नाम पर लोग अपना समय, धन व मेहनत प्रसादपूजा के नाम पर बरबाद करेंगे, पंडेपुरोहितों की धर्म की दुकानें सजेंगी और लोगों को पापपुण्य का लौलीपौप दिखा कर लूटा जाएगा.

दरअसल, हिंदुओं में तीर्थयात्रा का मोह और चलन बेवजह नहीं है. बचपन से ही हिंदुओं के दिलोदिमाग में यह बात कूटकूट कर भर दी जाती है कि तुम पापी हो और चूंकि सांसारिक जीवन में हो इसलिए तुम से पाप होते रहेंगे. नतीजतन, तुम्हें मोक्ष नहीं मिलेगा. मोक्ष न मिलने का मतलब है कि मरने के बाद तुम नर्क की कष्टप्रद यंत्रणाएं भोगोगे. ये यंत्रणाएं क्या और कैसी हैं, इस का गरुड़ पुराण में विस्तार से वर्णन इतने खौफनाक तरीके से किया गया है कि शेर का कलेजा रखने का दावा करने वाला भी इन्हें सुन कर कांप जाए और उन से बचने के उपाय ढूंढ़ने लगे और इन से बचने में यदि उस का घरबार बिक जाए तो भी हिचकिचाए नहीं.

दूसरे धार्मिक पाखंडों की तरह तीर्थयात्रा का विधान भी महज पैसा कमाने के मकसद से एक साजिश के तहत रचा गया है. जिंदगीभर तो आदमी धर्म के मकड़जाल में फंसा अपने खूनपसीने की गाढ़ी कमाई उस पर लुटाता ही रहता है लेकिन तमाम जिम्मेदारियों से निबटने के बाद जब वह थोड़ा चिंतामुक्त होता है तो कथित पापों से मुक्ति पाने के लिए उसे तीर्थयात्रा की सलाह दी गई है.

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