मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बैंच ने सख्ती दिखाते हुए निर्देश जारी किए हैं कि ऐसे आयोजनों (झांकी) पर यदि व्यापारी और रहवासी आपत्ति दर्ज कराते हैं तो पहले उन्हें सुना जाए, इस के बाद ही अनुमति देने पर विचार किया जाए.

एक निजी याचिका पर फैसला देते हुए जस्टिस पी सी शर्मा ने प्रशासन, नगर निगम और पुलिस विभाग को इस संबंध में निर्देश भी जारी किए थे. हुआ यों कि पिछले साल गणेशोत्सव के दौरान इंदौर का मूसाखेड़ी चौराहा पूरी तरह बंद कर दिया गया. 10 दिन तक यातायात तो प्रभावित रहा ही, झांकी के कारण 8 दुकानदारों को इस दौरान अपनी दुकानें भी बंद रखनी पड़ी थीं. इस पर एक व्यापारी ने एतराज जताते हुए अदालत की शरण ली तो 18 मई, 2014 को अदालत को सख्ती दिखाने के लिए मजबूर होना पड़ा. मामले में दिलचस्प बात यह थी कि झांकी निकालने वालों ने किसी से अनुमति लेने की जरूरत ही नहीं समझी थी.

बात कतई हैरानी की नहीं है क्योंकि यह समस्या इंदौर के एक चौराहे की नहीं बल्कि देशभर की सड़कों और चौराहों की है जिन पर इफरात से झांकियां निकलने लगी हैं. बीते 2 दशकों में झांकियों का कारोबार इस कदर बढ़ा है कि हर दूसरे चौराहे पर गणेश या देवी विराजे दिखते हैं.

क्यों बढ़ रही है तादाद

झांकियों की तेजी से बढ़ती संख्या के पीछे यह सोचना बेमानी है कि आस्था है. हकीकत यह है कि झांकियां अब पैसाकमाऊ धार्मिक कृत्य साबित होने लगी हैं. कई झांकियां तो इतनी हाईटैक, भव्य और खर्चीली होती हैं कि उन्हें देख कर लगता नहीं कि देश में गरीबी नाम की कोई चीज है.

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