हरिद्वार में पंडेपुरोहित धर्म की आड़ ले कर ही सत्ता में बनाए अपने रसूख के चलते करोड़ों अरबों की जमीन कब्जाए बैठे हैं. दूसरों को त्यागी बनने और सुखों से वंचित रहने का उपदेश देने वाले इन फर्जी संतों का यह अवैध कारोबार देख कर तो यही लगता है कि यहां संत के भेस में भूमाफिया पल रहे हैं. पढि़ए नितिन सबरंगी की रिपोर्ट.

धार्मिक नगरी के रूप में मशहूर गंगा नदी के किनारे बसे हरिद्वार में धर्म के नाम पर साधुसंत महज धंधा ही नहीं करते बल्कि जमीनों पर अतिक्रमण व कब्जे का काम भी जम कर करते हैं. वे ऐसे दबंग भी नहीं कि हथियारों और लाठियों के बल पर जमीन कब्जाते हों. वे धर्म की आड़ ले कर भक्तों की ताकत व सत्ता में रसूख के बल पर ही अवैध काम करते हैं. गंगा के सीने में छेद कर के उस की सैकड़ों एकड़ जमीन को उन्होंने कब्जाया हुआ है. दूसरों को सांसारिक सुखों से दूर रहने की शिक्षा देने वाले खुद प्राकृतिक वातावरण व अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हो कर जीवन का आनंद ले रहे हैं. नियमकायदों को सूली पर लटकाने के हुनर के ये बाजीगर भी हैं. सत्ताधारी नेता भी चूंकि संतों के दरबार में नतमस्तक होते हैं इसलिए सरकारी तंत्र बाबाओं के खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत नहीं जुटा पाता. यदि कोई गुस्ताखी कर भी दे तो उसे सबक सिखाने का काम किया जाता है. धर्म के नाम पर ये दबंगई की ऐसी मिसाल कायम करते हैं कि हर कोई हैरान हो जाता है. उन की करतूतों को देख कर सोच का यह संतुलन भी अस्थिर हो जाता है कि ऐसे संतों को संत कहें या भूमाफिया?

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