धर्म और पूजापाठ के आडंबर में डूबे अंधभक्तों का हश्र कितना दर्दनाक हो सकता है, उत्तराखंड त्रासदी के बाद धमारा घाट के रेल हादसे से समझा जा सकता है. पूजापाठ के लिए जा रहे अंधभक्तों की रेलवे ट्रैक पर हुई मौत से क्या धर्म के धंधेबाज चेतेंगे या फिर... पढि़ए बीरेंद्र बरियार ज्योति की रिपोर्ट.

‘जय हो मां कात्यायनी की’, ‘जय हो माता रानी की’, ‘जय माता दी’ के नारे लगाते, ढोलनगाड़े बजाते और भजनकीर्तन करते दर्जनों लोगों को राज्यरानी एक्सप्रैस ने बिहार के धमारा घाट रेलवे स्टेशन पर रौंद डाला. उन्हें बचाने के लिए रेलवे और सरकार तो खैर कुछ नहीं ही कर सकी, जिस भगवान की वे लोग पूजा करने जा रहे थे वह भी अपने अंधभक्तों को बचाने नहीं आया. पूजापाठ की धुन में भक्त शायद भूल गए कि रेलवेलाइन पर चल कर वे कितना खतरनाक जोखिम उठा रहे हैं. भक्तों की भीड़ पास के ही कात्यायनी मंदिर में देवी को खुश करने के लिए दहीचूड़ा का चढ़ावा चढ़ाने के लिए जा रही थी, तभी उन के पीछे से 110 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ्तार से आती सहरसापटना राज्यरानी एक्सप्रैस (12567) ट्रेन ने कइयों को रौंदते हुए मौत के घाट उतार डाला. समूचा प्लेटफौर्म और रेल की पटरियां खून से लाल हो गईं.

ढोलनगाड़ों और कीर्तनों की गूंज की जगह हवा में चीखपुकार और भगदड़ मच गई. टे्रन के पहियों में कट कर कई लाशों के चीथड़े उड़ गए. रेलवेलाइन के आसपास खून ही खून और कटेफटे अंग बिखरे हुए थे. हादसे के बाद जख्मी हुए लोगों को बचाने के बजाय रेलवे और लोकल प्रशासन के अफसर अपनी जान बचा कर भाग खड़े हुए. जब लोगों का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ तो उस के बाद अफसर घायलों और जलती टे्रन को बचाने के बजाय अपनी नौकरी बचाने की कोशिशों में लग गए.

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