आखिरकार बीती 17 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साफतौर पर वह बात कहनी ही पड़ी जिस का उन के पीएम बनने के बाद से लोग इंतजार कर रहे थे. लोगों की दिलचस्पी यह जानने में थी कि क्या नरेंद्र मोदी हिंदूवादी संगठनों के इशारे पर नाचते धर्म और हिंदुत्व की राजनीति करेंगे या फिर तरक्की की जिस के लिए उन्हें वोट दिया गया है. उस दिन नरेंद्र मोदी दिल्ली में ईसाइयों के एक बड़े धार्मिक जलसे में शामिल हुए थे जहां उन्होंने कहा कि धर्म किसी भी आदमी का निजी मामला है और हर किसी को अपनी मरजी से धर्म चुनने का, उस में रहने या न रहने का और उसे बदलने का भी हक है.तमाम धर्मों के लोगों को हिफाजत की गारंटी देते पीएम ने भरोसा दिलाया कि किसी भी तरह की धार्मिक हिंसा बरदाश्त नहीं की जाएगी, देश का संविधान धर्म के नाम पर हिंसा की कतई इजाजत नहीं देता.

हालांकि मुश्किल है पर यकीन करना पड़ेगा कि ये वही नरेंद्र मोदी हैं जिन की इमेज एक कट्टरवादी हिंदू नेता की रही है और जिन के माथे पर गोधरा कांड का काला टीका लगा हुआ है. फौरी तौर पर जानकारों द्वारा अंदाजा यही लगाया गया कि यह ओबामा फैक्टर का असर है. गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जब भारत आए थे तब मोदी और उन की सरकार ने स्वागत में लाल कालीन और पलकपांवड़े बिछाए. वापस जाते ओबामा ने नरेंद्र मोदी को आगाह किया था कि उन्हें धर्म के नाम पर समाज को बांटने वालों से बचना चाहिए.

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